हमीरपुर (एमबीएम न्यूज) : प्रदेश के किसानों को अब अपने खेतों व बगीचों में कीटनाशकों को मारने के लिए दवाओं पर आश्रित नहीं होना पड़ेगा। एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी पालमपुर के वैज्ञानिकों ने पालप ट्रैप तकनीक को इजाद करके किसानों की काफी मुश्किलें समाप्त कर दी हैं। फलों और सब्जियों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों को कीटनाशकों से मारने के बजाय अब पालप ट्रैप तकनीक से काबू पाया जाएगा। तीन कृषि वैज्ञानिको ने नई तकनीक ईजाद की है, जिससे फलों और सब्जियों पर कीट नाशकों का उपयोग नहीं किया जाएगा।
क्या है पालप ट्रैप….
एग्रीकल्चर विश्वविद्यालय में कार्यरत विशेषज्ञ कीट विज्ञान डॉ. पीके मेहता के अनुसार मक्खी कृषि के लिए एक ज्वलंत समस्या है। अब बिना कीटनाशक के छिड़काव से इसका प्रबंधन संभव है। उनके अनुसार वर्षों शोध के उपरांत इसके लिए एक टैप तैयार किया गया है। जिसे पालप ट्रैप का नाम दिया है। इस ट्रैप को सुन्दरनगर तथा पालमपुर में तैयार किया जा रहा है। जिसमें इस मक्खी के नर लगभग 200 मीटर की दूरी से खींचे चले आते हैं।
यह ट्रैप खाली प्लास्टिक की बोतल से बनाया जाता है। इसमें एक ऐसी कैमिकल गंध प्लाई बोर्ड के टुकड़े में डालकर बोतल में रखी जाती है। जिससे प्राकृतिक तौर पर नर मक्खियां, मादा मक्खियों की ओर आकर्षित होकर बोतल में चली जाती हैं। ये नर मक्खियां बोतल में डाले गये छिद्रों से बोतल में जाकर मर जाती हैं। इस तकनीक को पूरे क्षेत्र के लोग अपनाए तो बिना कीटनाशक के प्रयोग से लगभग 80 प्रतिशत फल मक्खी की कमी उस क्षेत्र में दर्ज की जा सकती है।
पालम ट्रैप का हुआ है सफल परीक्षण
पिछले पांच सालों से पालम ट्रैप का परीक्षण व आंकलन किसानों के खेतों में किया गया है। जो काफी सफल रहा है। मंडी जिला के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा, हमीरपुर, ऊना, बिलासपुर, कुल्लू, सोलन, सिरमौर व चंबा जिला में इस ट्रैप को लेकर काफी उत्साह देखा गया। यही नहीं इस ट्रेप को किसानों ने उपयोग में लाना भी शुरू कर दिया है।
दूसरे राज्यों में भी हो रहा है सप्लाई
ट्रैप के सफल परीक्षण के बाद अब प्रदेश के बाहर हरियाणा और पंजाब में भी की जा रही है। डॉ पीके मेहता का कहना है कि किसान पालम ट्रैप की प्रति बीघा दो बोतलें किसी छड़ी या तार से अपने खेतों में लटका सकते हैं। जिससे लगभग 400 वर्ग मीटर क्षेत्र कवर हो जाता है। इस ट्रैप की कीमत मात्र 100 रुपए है और कृषि विभाग के माध्यम से 50 प्रतिशत अनुदान के साथ किसान इसे विक्रय केंद्रों से भी प्राप्त कर सकते हैं।
कीटों का तोड़ ढूंढने में पाई सफलता
कृषि विज्ञान केंद्र सुंदरनगर तथा कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर में कार्यरत तीन वैज्ञानिकों डा.पीके मेहता, डॉ.पंकज सूद और चंद्रशेखर प्रभाकर ने तीन-चार साल के शोध के उपरांत फलों व सब्जियों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों का तोड़ ढूंढने में सफलता पाई है।