राजगढ़़ (शेरजंग चौहान) : पहाड़ी परंपराओं को पुनर्जीवित करने की श्रृंखला में एक और लुप्तप्रायः मेले का नाम जुड़ गया है। इस मेले को क्षेत्र में भजोल कहा जाता है। भजोल यानि भादो महीने में लगने वाला मेला। यह मेला वे ग्वाल-बाल लगाया करते थे, जो इन पहाड़ों पर अपने मवेशियों को चराने के लिए लाते थे।
इस प्रकार एक-एक जंगल में दर्जनों ग्वाले अपने पशुओं को चराने के साथ-साथ खूब मौज मस्ती करते थे। ऐसे में इन्होंने सावन और भादों के बीस गते शनोल और भजोल को निश्चित किया हुआ था कि इन दोनों महीनों की बीस को आसपास के ग्रामीण आकर हमारे साथ सावन और भादों की बीस मनायेंगे। उनके मनोरंजन के लिए ये चरवाहे अपने बैलों को लड़ाते थे। इस दिन के लिए ये ग्वाले अपने बैलों को साफ सुथरे करके सींगों को तेल से चुपड़कर खूब सजा कर लाते थे।
सब ग्रामीण सावन की बीस को तो श्नोल नाम के पकवान लाते थे, जबकि भादो की बीस को छूट होती थी, कुछ भी पकवान ला कर सब एक साथ खाते थे। इन मेलों में प्रचलित श्नोल मेले बथाउधार, झिमीधार, पौंडला, नेई-नेटी, चुरवाधार इत्यादि स्थानों पर और भजोल मेला बनाली की धार में लगा करता था। मगर बदलते सामाजिक परिवेश में अब न तो पशु रहे और न ही ग्वाल-बाल। इस बदलाव का प्रभाव मेलों पर भी पड़ा और ये ग्वाल-बाल के मेले इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह गए।
इन लुप्तप्रायः परंपराओं को पुनर्जीवित करने में कई संस्थाएं एवं व्यक्ति आगे आए हैं और इन लुप्त पड़ी परंपराओं को नया रूप दे कर फिर से स्थापित करने में जुटे हैं। सांस्कृतिक परंपराओं के पुनर्जीवन की बात की जाए तो विद्यानंद सरैक, कृष्णलाल सहगल, जोगेंद्र हाब्बी, शैंकियाराम इत्यादि प्रमुख नाम हैं। इसी कड़ी में मेलों के संदर्भ में कई लुप्त मेले फिर से अस्तित्व में आ गए हैं, जिनमें बनालीधार में मनाया जाने वाला भजौल मेला पिछले वर्ष से फिर मनाया जा रहा है, जिसका श्रेय डरेणा, रवाटा एवं कतोगा के नौजवानों को जाता है।
पिछले वर्ष से प्रकाश में आये भजोल मेले के प्रथम मुख्य अतिथि राजकुमार एवं सह अतिथि सुरेंद्र तोमर थे जिन्होंने 50 हजार का योगदान दे कर इसे विशाल मेले का रूप देने का आग्रह किया था। उस शुभारंभ का यह प्रभाव पड़ा कि इस बार भी उक्त मेला लगाया गया तथा योजना बोर्ड के उपाध्यक्ष मुख्य अतिथि एवं सह अतिथि राजकुमार बने।
हां एक अंतर जरूर आया है। पारंपरिक मेले के दौरान बैलों को लड़ाया जाता था परन्तु अब कबड्डी की टीमों को भिढ़ाया जाता है। इस बार भी 16 टीमों में भिडंत हुई जिनमें बथाउधार की टीम अव्वल रही।