नाहन (शैलेंद्र कालरा): भांग उखाड़ो अभियान में राजगढ़ पुलिस ने कमाल कर दिखाया है। दरअसल पुलिस ने राजगढ़ उपमंडल में एक ऐसी जगह को ढूंढ निकाला है, जिसे अगर सिरमौर का मलाणा कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। लगभग 12 फुट ऊंचाई के तकरीबन 2 लाख भांग के पौधे मिले हैं। यकीन मानिए कि अगर इन पौधों से चरस बना ली जाती तो तैयार होने पर इसकी कीमत 20 से 30 करोड़ भी पहुंच सकती थी।
भांग का जंगल उखाड़ते डीएसपी योगेश रोल्टा।कैसे हुआ अंकगणित?
बाजार में घटिया चरस की कीमत एक से डेढ़ लाख रुपए प्रति किलो होती है। एक पौधे से 200 से 300 ग्राम चरस का उत्पादन संभव है। अंदाजा लगाइए 2 लाख पौधों से किस पैमाने पर चरस बन सकती थी। यानि नष्ट किए जा रहे पौधों से बेहतरीन क्वालिटी की 500 से 600 क्विंटल चरस का उत्पादन संभव था।
यहां तक पहुंचने के लिए खुद डीएसपी योगेश रोल्टा समेत टीम के सदस्यों को तकरीबन चार घंटे की पैदल चढ़ाई भी चढऩी पड़ी। खुद डीएसपी ने भी लगभग 5 हजार पौधों पर दराट चलाया, क्योंकि 12 सदस्यीय टीम इतने बड़े पैमाने पर पौधे नहीं उखाड़ सकती थी। पौधों की स्थिति देखकर साफ लग रहा है कि इसे चरस उत्पादन के लिए ही बड़े स्तर पर उगाया गया है।
जदोल टपरोली के पैन कुफर गांव की चोटी पर दोचियां हैं। सनद रहे कि दोची वह घर होता है, जिसे ऊंचे स्थानों पर अस्थाई तौर पर बनाया जाता है, ताकि पशुओं को चरागाह मिल सके। साथ ही निजी जमीनों में समय-समय पर खेतीबाड़ी होती है। एमबीएम न्यूज को मिली सूचना के मुताबिक मौके पर वन विभाग के अलावा राजस्व विभाग के कर्मचारी व अधिकारी भी मौजूद हैं। अगर इतने बड़े पैमाने पर भांग की खेती निजी भूमि पर पाई जाती है, तो उस सूरत में एफआईआर तक दर्ज की जा सकती है।
हालांकि दावे से नहीं कहा जा सकता, लेकिन माना जा रहा है कि भांग उखाड़ो अभियान में अब तक की यह समूचे प्रदेश में सबसे बड़ी सफलता हो सकती है। यह अलग बात है कि कुल्लू के मलाणा में भी भांग उखाडऩे के लिए अद्र्धसैनिक बल भेजे गए हैं। सूत्र बताते हैं कि सिरमौर के इस मलाणा की जानकारी पुलिस को रहती थी, लेकिन यहां कार्रवाई करने का साहस नहीं उठाया जाता था।
यह भी बताया जा रहा है कि यह स्थान शिमला के चौपाल व ठियोग उपमंडल के अलावा सिरमौर के राजगढ़ उपमंडल से घिरा हुआ है। इसी कारण बेखौफ तरीके से भांग से चरस बनाने का कारोबार भी खूब फल-फूल रहा था। यह भी बताया जा रहा है कि यहां चरस को हाथों पर मलने की बजाए देवदार के स्लीपरों पर पटक-पटक कर तैयार किया जाता है। यानि अंदाजा लगाना भी मुश्किल है कि किस पैमाने पर चरस का उत्पादन किया जा रहा होगा।
उधर संपर्क किए जाने पर डीएसपी योगेश रोल्टा ने माना कि डेढ़ से दो लाख पौधे मिले हैं। उन्होंने कहा कि तीन से चार घंटे की पैदल चढ़ाई के बाद टीम पहुंची है। डीएसपी ने यह भी माना कि निजी भूमि होने की सूरत में एफआईआर भी दर्ज की जा सकती है।
सितंबर में तैयार होनी शुरू हो जाती है चरस
इस तरह की एकांत जगहों पर बेखौफ तरीके से सितंबर महीने में चरस का उत्पादन शुरू हो जाता है। ऊंचाई होने की वजह से गुणवत्ता भी काफी ऊंची होती है। ऐसा भी माना जा रहा है कि कुल्लू के मलाणा की तरह ही यहां की चरस होती है, क्योंकि यहां की जलवायु भी मलाणा के साथ मिलती-जुलती है।