हमीरपुर (एमबीएम न्यूज): वतन की आशिकी में शहादत का जो एहसास हिमाचलियों ने लिया, शायद ही किसी ने लिया हो। रग-रग में देश से मोहब्बत और उस पर कुर्बान होने का जुनून पहाड़ के कतरे-कतरे में है। भारतीय सेना का इतिहास भी यही कहता है। हिमाचल के 1140 जवान अब तक देश पर कुर्बान हो चुके हैं। बेशक केंद्र ने अलग रेजिमेंट, सैन्य प्रशिक्षण संस्थान, सीएसडी डिपो, आयुद्ध कारखाना, बीएसएफ ट्रेनिंग सेंटर से हिमाचल को दूर रखा हो, मगर कुर्बानियों का सफर देवभूमि से यूं ही जारी रहेगा।
हमीरपुर
देश की सरहद पर दुश्मनों को ढेर करने में हिमाचली सपूत सबसे आगे रहते हैं। वर्ष 1962 से लेकर ऑपरेशन रक्षक तक हर जंग की जीत की कहानी हिमाचली फौजियों की दिलेरी ने लिखी है। हालांकि हर बार शहादत भी इसी पहाड़ी प्रदेश के नसीब में आई है। भारतीय सेना के इतिहास में सबसे ज्यादा हिमाचल प्रदेश के 1140 जवान अब तक देश के लिए कुर्बान हो चुके हैं।
वर्ष 1962 में चीन के खिलाफ हुए युद्ध में हिमाचल के 131 जवानों ने देश के लिए प्राण न्यौछावर किए थे। तीन साल बाद पाकिस्तान को करारी शिकस्त देने के लिए वर्ष 1965 में हिमाचल के 199 फौजी शहीद हुए।
वर्ष 1971 में पाकिस्तान की दोबारा घुसपैठ को हिमाचल के जवानों ने ही रौंद कर उखाड़ फेंका था। हालांकि इस बार भी हिमाचल के नसीब में 195 कफन आए।
ऑपरेशन मेघदूत में हिमाचल के 25 जवानों ने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी।
ऑपरेशन पवन में 25 तथा ऑपरेशन विजय कारगिल में 54 हिमाचली फौजी देश पर मर मिटकर भारतीय तिरंगे को ऊंचा कर गए।
ऑपरेशन पराक्रम में 85 हिमाचली गबरुओं ने शहादत का जाम पिया।
ऑपरेशन रक्षक में शहादत का यह आंकड़ा बढक़र 172 पहुंच गया।
अन्य छुटपुट ऑपरेशन में हिमाचल के 245 जवान शहीद हो चुके हैं।
बताते चलें कि अब तक युद्धों में सबसे ज्यादा सपूत कांगड़ा जिला ने 515 खो दिए हैं। इस जिला में अब हर माह औसतन दो-तीन जवानों के शव तिरंगे में लिपटकर आते हैं। शहादत पाने वालों में दूसरा नंबर हमीरपुर का है।
अब तक के शहीद
1962 चीन 131
1965 पाक 199
1971 पाक 195
ऑपरेशन मेघदूत 25
ऑपरेशन पवन 25
ऑपरेशन विजय 54
ऑपरेशन पराक्रम 85
ऑपरेशन रक्षक 172
अन्य 245
कांगड़ा नंबर वन
कांगड़ा 515
हमीरपुर 158
मंडी 147
बिलासपुर 90
सोलन 39
सिरमौर 33
चंबा 32
शिमला 31
कुल्लू 11
ऑपरेशन विजय के शहीद
कांगड़ा
कैप्टन विक्रम बतरा, लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया, ग्रेेनेडियर बजिंद्र सिंह, रायफल मैन राकेश कुमार, लांस नायक वीर सिंह, रायफल मैन अशोक कुमार, रायफल मैन सुनील, सिपाही लखबीर सिंह, नायक ब्रहा्रदास, रायफल मैन जगजीत सिंह, सिपाही संतोष सिंह, हवलदार सुरेंद्र सिंह, लांस नायक पदम सिंह, ग्रेनेडियर सुरजीत सिंह, ग्रेनेडियर योगिंद्र सिंह।
मंडी
कैप्टन दीपक गुलेरिया, नायब सूबेदार खेम चंद राणा, हवलदार कृष्ण चंद, नायक सरवण कुमार, सिपाही टेक सिंह मस्ताना, सिपाही राजेश कुमार, नरेश कुमार, हीरा सिंह, ग्रेनेडियर पूर्ण चंद, हवलदार गुरदास सिंह।
हमीरपुर
हवलदार कश्मीर, हवलदार राज कुमार, दिनेश कुमार, स्वामी दास चंदेल, राकेश कुमार, प्रवीण कुमार, सुनील कुमार, दीप चंद।
बिलासपुर
हवलदार उधम सिंह, मंगल सिंह, विजय पाल, राज कुमार, अश्वनी कुमार, प्यार सिंह व मस्तराम।
कुल्लू
हवलदार डोला राम।
चंबा
सिपाही खेमराज, सिरमौर, कुलविंद्र सिंह व कल्याण सिंह।
सोलन
धर्मेंद्र व प्रदीप।
ऊना
कै. अमोल कालिया व मनोहर लाल।
शिमला
ग्रेनेडियर यशवंत सिंह, श्याम सिंह, नरेश कुमार व अनंत राम।
हर बार रुसवाई
हिमाचल की कुर्बानियां केंद्र में वोट की राजनीति की भेंट चढ़ती आई हैं। प्रदेश में अंग्रेजों के जमाने से ही सैन्य प्रशिक्षण कमान तो है, मगर कोई बड़ा संस्थान नहीं। प्रदेश कई वर्षों से उम्मीद लगाए बैठा है कि उपयुक्त आबोहवा के चलते या तो प्रदेश को ओटीए ट्रेनिंग सेंटर मिलेगा या फिर एनडीए की प्रशिक्षणशाला मगर हाथ कुछ नहीं लग सका। यहां तक कि सीडीएस पर आधारित कोई भी केंद्र भी प्रदेश को मंजूर नहीं हो सका।
हिमाचल में शिमला से लेकर कांगड़ा तक छावनी क्षेत्र हैं बावजूद इसके प्रदेश में एक भी डिफेंस कालोनी नहीं बन सकी है। हैरानी की बात है कि जिस प्रदेश के जवान सेना के तीनों अंगों में अपने शौर्य का शानदार प्रदर्शन कर चुके हों, उस प्रदेश की भावी पीढ़ी को सेना के विभिन्न पदों पर बनने के लिए एक भी कोचिंग सेंटर तक नहीं है, जो युवा एनडीएए ओटीए या फिर सीडीएस के जरिए सेना के तीनों अंगों में जाने की तैयारी करते हैं, उन्हें मजबूरी के आलम में भारी खर्च वहन करके चंडीगढ़, दिल्ली या फिर पंजाब के अन्य हिस्सों में जाना पड़ता है।