शिमला, 28 जनवरी : 2017 में यूपीएससी (UPSC) परीक्षा उत्तीर्ण करने वाली साधारण किसान परिवार की बेटी इल्मा अफरोज (IPS Ilma Afroz) को हिमाचल प्रदेश के बद्दी में बतौर पुलिस अधीक्षक पहली तैनाती मिली है। औद्योगिक क्षेत्र होने की वजह से बद्दी हमेशा ही आपराधिक वारदातों को लेकर संवेदनशील रहता है, लिहाजा तेज तर्रार आईपीएस की तैनाती की कोशिश होती है। इल्मा अफरोज 2018 बैच की आईपीएस (IPS) अधिकारी है। बता दे कि हिमाचल प्रदेश में प्रोबेशनर व ट्रेनिंग पीरियड के दौरान भी वो अपना दायित्व बखूबी निभाती रही।
मंडी में यूपीएससी की तैयारी कर रहे युवाओं को मार्गदर्शन में भी भूमिका निभाई। पहली बार प्रोबेशनर (Probationer) डीएसपी (DSP) के तौर पर ऊना के अंब में पारी शुरू की थी। जब वह 14 साल की थीं तो उनके पिता की मौत हो गई थी, फिर उनकी मां ने अपने पैरों पर खड़े होकर इल्मा की जिम्मेदारी संभाली और उसे आईपीएस अफसर बनाकर एक बड़ा मुकाम हासिल किया। लड़की होने के चलते कई ताने भी सुनने पड़ते थे।
यूपी के मुरादाबाद के कुंदरकी कस्बे से निकलकर ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी (Oxford University) न्यूयॉर्क तक का सफर तय करने वाली इल्मा अफरोज ने विदेश में नौकरी का ऑफर छोड़ (Job offer) कर देश सेवा को चुना था। इल्मा की हायर स्टडीज स्कॉलरशिप्स के माध्यम से हुई है। सेंट स्टीफेंस (St. Stephens) के बाद इल्मा को मास्टर्स के लिए ऑक्सफोर्ड जाने का अवसर मिला। विदेश में डिग्री पूरी करने के बाद इल्मा एक वॉलेंटियर प्रोग्राम में शामिल होने पर न्यूयॉर्क (New York) गई। जहां उन्हें Financial Estate कंपनी में बढ़िया नौकरी का ऑफर मिला। इल्मा चाहती तो यह ऑफर ले लेती और विदेश में ही बस जाती, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।
न्यूयॉर्क से वापस आने के बाद इल्मा के मन में यूपीएससी का ख्याल आया। इल्मा जब गांव वापस आती थी, तो गांव के लोगों की आंखों में एक अलग ही चमक होती थी। उन्हें लगता था बेटी विलायत से पढ़कर आई है, अब तो सारी समस्याएं खत्म कर देगी। किसी का राशन कार्ड (Ration card) बनना है तो किसी को किसी सरकारी योजना का लाभ लेना है। हर कोई इल्मा के पास आस लेकर आता था। इल्मा को भी लगा की यूपीएससी एक ऐसा क्षेत्र है, जिसके द्वारा वे अपना देश सेवा का सपना साकार कर सकती हैं।
इल्मा ने साल 2017 में 217वीं रैंक के साथ 26 साल की उम्र में यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली। जब सर्विस चुनने की बारी आई तो उन्होंने आईपीएस चुना। बोर्ड ने पूछा भारतीय विदेश सेवा ((Indian Foreign Service) क्यों नहीं तो इल्मा बोली, नहीं सर मुझे अपनी जड़ों को सींचना है, अपने देश के लिए ही काम करना है।
14 साल की उम्र में खोए अब्बा…
अम्मी ने कहा था, दुनिया देखो-जहां चाहो जाओ, जब कुछ करने का मौका मिले तो अपनों के लिए करो। अपनों के हिस्से का कुछ अंधेरा कम कर सको तो करो। बस इसी सोच को लेकर आईपीएस इल्मा अफरोज चकाचौंध की दुनिया को छोड़कर वापस चली आई थी। आईपीएस इल्मा अफरोज ने मात्र 14 साल की उम्र में ही अपने पिता को खो दिया था। कैंसर की बीमारी के कारण अब्बा का निधन हो गया। परिवार की जिम्मेदारी अम्मी पर आ पड़ी। 14 साल की इल्मा पर भी मां के साथ खेतों में काम करने की नौबत आ गई थी। गांव के ही एक बुजुर्ग ने जब पाया कि इल्मा होनहार बच्ची है तो उन्होंने भी उसे पढ़ाने के लिए कुछ खर्चा उठाने का फैसला लिया था।