शिमला, 15 जनवरी : मकर सक्रांति का पर्व समूचे क्योंथल़़ क्षेत्र में कुल देवताओं की पूजा और पांरपरिक व्यंजनों को तैयार करके बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। क्षेत्र के सैंकड़ों लोगों द्वारा अपने कुल देवता के मंदिर में माघ की साजी के पर्व पर हाजरी भरी। बता दें कि शिमला व सिरमौर जिला में वर्ष के दौरान पड़ने वाली चार बड़ी साजी अर्थात बैशाखी, हरियाली, दिवाली और माघ की साजी को अपने कुल देवता व देवी की पारंपरिक पूजा करने का विशेष विधान है। लोगों की आस्था है कि इन चार बड़ी साजी पर पीठासीन देवता की पूजा से देवी देवता प्रसन्न होते है और क्षेत्र में समृद्धि एवं खुशहाली का सूत्रपात होता है।
पीरन गांव के वरिष्ठ नागरिक दयाराम वर्मा ने बताया कि मकर सक्रांति का त्यौहार क्योंथल के अतिरिक्त पड़ोसी जिला सिरमौर में भी पारंपरिक ढंग से मनाया जाता है। यह पर्व दो दिनों तक चलता है जिसमें लोहड़ी के दिन लोग अपने घरों में सिडडू अथवा अस्कलियां बनाने की विशेष परंपरा है जिसे घी के साथ खाया जाता हैं। संक्राति के दिन लोग अपने घरों में पारंपरिक व्यंजन खीर व पटांडे के अतिरिक्त खिचड़ी भी पकाई जाती है। दयाराम वर्मा ने बताया कि इस बार मकर संक्रांति को लेकर काफी असमंजस रहा है। परंपरा के अनुसार इस बार कुछ क्षेत्र में 14 जनवरी और कुछ गांव में 15 जनवरी को मकर संक्रांति अर्थात माघ की साजी का पर्व मनाया गया।
बता दें क्योंथल क्षेत्र में लोहड़ी को अलाव जलाकर अग्नि पूजा करने की परंपरा नहीं है। यह पर्व बड़े सादगी के साथ मनाया जाता है, जबकि सीमा पर लगते गिरिपार क्षेत्र में माधी पर्व पर बकरे काटे जाने की परंपरा बदलते परिवेश में भी कायम है। वरिष्ठ नागरिक दौलतराम मेहता का कहना है कि माघी पर्व से दिन बढ़ने और राते घटने लग जाती है। उन्होने बताया कि मकर संक्राति के दिन विशेष तौर पर कुल देवता की पूजा का विधान है। लोग घरों में सिडडू, अस्कलियां, खीर व पटांडे इत्यादि व्यंजन के बड़े शौक से बनाते है।
उन्होने बताया कि पहाड़ों में देवताओं की पूजा के लिए चार प्रमुख त्यौहारों का विशेष महत्व है जिनमें बैशाख अर्थात बीशू की साजी, श्रावण मास की हरियाली, दीपावली और मकर संक्राति अर्थात माघ की साजी शामिल है। बदलते परिवेश में ग्रामीण परिवेश में त्यौहारों का स्वरूप बदलने लगा है। इसके बावजूद भी लोग पारंपरिक त्यौहारों का प्रचलन कायम है जिससे क्षेत्र की संस्कृति का संवर्धन होता है ।