कुल्लू (एमबीएम न्यूज़) : मौसम के बदलते तेवरों और जमीन के लगातार बंटाधार ने किसानों के समक्ष कई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। पारंपरिक खेती अब उन्हें मनमाफिक मुनाफा नहीं दे पा रही है। लेकिन, इन चुनौतियों को भी अवसर में बदला जा सकता है। इसके लिए आवश्यकता है खेती के आधुनिक तरीके और फसल विविधीकरण को अपनाने की। इनके माध्यम से कृषि को भी बड़े मुनाफे का व्यवसाय बनाया जा सकता है।
मिड हिमालय जलागम विकास परियोजना की प्रेरणा व प्रोत्साहन से कुल्लू जिला के कई प्रगतिशील किसानों ने कुछ ऐसा ही करके दिखाया है। बदलती परिस्थितियों के अनुसार खेती करने वाले ये किसान-बागवान घर में ही अच्छी आय अर्जित कर रहे हैं और अन्य लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बन रहे हैं। इन्हीं प्रगतिशील किसानों में से एक हैं ग्राम पंचायत कराड़सू के गांव बिष्टबेहड़ के युवा कर्णपाल। चार भाईयों के आम परिवार से संबंध रखने वाले कर्णपाल के पास सीमित जमीन है लेकिन अपनी मेहनत, प्रगतिशील सोच और प्रदेश सरकार के प्रोत्साहन के बल पर वह आज जमीन के छोटे से टुकड़े पर ही नकदी फसलों के रूप में ‘सोना’ उगा रहे हैं।
दरअसल, कर्णपाल व उसके भाई अपनी पुश्तैनी जमीन पर पारंपरिक फसलें उगा रहे थे लेकिन इन फसलों से उन्हेें बहुत कम आय हो रही थी। इतनी कम आय में उनका गुजर-बसर बहुत कठिन था। कर्णपाल व उसके भाई किसी अच्छे रोजगार की तलाश में थे। इसी बीच उनकी पंचायत में मध्य हिमालय जलागम विकास परियोजना आरंभ हुई। इस परियोजना के अधिकारियों ने कर्णपाल और बिष्टबेहड़ के अन्य किसानों को फसल विविधीकरण के लिए प्रेरित किया और पारंपरिक फसलों के साथ-साथ नकदी फसलें जैसे-लहसुन, गोभी, मटर व टमाटर आदि उगाने की सलाह दी।
परियोजना के तहत बिष्टबेहड़ में किसान समूहों का गठन किया गया। किसानों को अपने-अपने खेतों की मिट्टी की जांच विभागीय प्रयोगशाला में करवाने के लिए प्रेरित किया गया। कृषि व बागवानी के वैज्ञानिकों ने गांव में नकदी फसलों की खेती की विभिन्न तकनीकों व विधियों का प्रदर्शन किया। किसानों को बजौरा स्थित हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के अनुसंधान केंद्र में प्रशिक्षण भी दिया गया और उन्हें उन्नत किस्म के बीज, खाद व दवाईयां वितरित की गईं। परियोजना के माध्यम से ही उन्हें पाईपें व सिंचाई के उपकरण मुहैया करवाए गए।
जलागम विकास परियोजना ने तो कर्णपाल की तकदीर ही बदल दी। आज वह अपने छोटे-छोेटे खेतों में ही लाखों की नकदी फसलें पैदा कर रहे हैं। कर्णपाल ने बताया कि इस वर्ष उन्होंने दस बिस्वा के खेत में कई क्विंटल लहसुन पैदा किया। बाजार में उसे लहसुन के बहुत ही अच्छे दाम मिले। लहसुन निकालने के बाद उन्होंने टमाटर, बैंगन व अन्य सब्जियां लगाईं। आजकल उनके खेत में टमाटर व अन्य सब्जियां भी खूब लहलहा रही हैं। विशेषकर उन्हें टमाटर के बहुत ही चोखे दाम मिल रहे हैं। कर्णपाल ने बताया कि इन नकदी फसलों से उन्हें सालाना लाखों की आमदनी हो रही है।
अपनी मेहनत व प्रगतिशील सोच के चलते वह न केवल घर में ही अच्छी आय अर्जित कर रहे हैं, बल्कि अन्य युवाओं के लिए भी प्रेरणास्रोत बन गए हैं। उनका कहना है कि नौकरियों के पीछे भागने के बजाय ग्रामीण युवा अगर अपने खेतों में ही मेहनत करें व आधुनिक खेती को अपनाएं तो उनकी आर्थिकी मजबूत हो सकती है।
उधर, जलागम विकास परियोजना के समन्वयक डा. रवि ठाकुर ने बताया कि परियोजना के विभिन्न संघटकों के अंतर्गत किसानों, बागवानों, पशुपालकों, युवाओं और महिलाओं को कई सुविधाएं प्रदान की गई हैं और उन्हें जीविकोपार्जन के लिए प्रशिक्षित किया गया है। इससे उनकी आर्थिकी मजबूत हो रही है और वे स्वरोजगार की ओर अग्रसर हो रहे हैं।
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