नाहन (एमबीएम न्यूज): हर खास व आम को इत्तला दी जाती है कि 14 मई 1943 सुबह सात बजे से गिरीपार की तहसील पच्छाद में मार्शल-लॉ लगा दिया गया है। इसमें मेजर हीरा सिंह बाम को सरेआम अत्याचार देते हुए मुतल्लका-लॉ-अता किया गया है। लिहाजा हर खास व आम को आगाह किया जाता है कि इलाका में हर प्रकार की मीटिंग्ज प्रोसेशन, जलसे वगैरह पर रोक लगा दी जाती है। पांच या पांच से ज्यादा शख्स किसी जगह जमा और न ही सरेआम इकटठे चल सकते हैं। कोई शख्स लाठी, डांगरा, दरांत, तलवार, शफागंज, पिस्तौल, कुल्हाड़ी, बंदूक, कृपाण या दिगर किसी किस्म का अस्लाह लेकर अपने मकान से बाहर नहीं जाएगा। कोई शख्स गुरूब आफताब व तलह आफजार के दर्मियां अपने घर से बाहर नहीं निकलेगा। लिहाजा कोई शख्स इस हुक्म की खिलाफत करेगा, तो उसे मौके पर ही गोली से उड़ा दिया जा सकता है। यह मार्शल लॉ मेजर बाम की अगुवाई में पझौता आंदोलन के कारण इलाका पझौता में लगाया गया था।
इस बारे में एचएस बाम मेजर कमांडेंट सिरमौर स्टेट फोर्सेज द्वारा दी गई इत्तला-आम का हूबहू तर्जुमा किया गया है। इलाका गिरीपार पच्छाद में जमींदारान पझौता-डि मण-कारली बगैरह में माह असोज विक्रमी संवत 1999 से कंट्रोल गल्ला, हसब लाईसेंस, सेना भर्ती, सिविल गार्डान, महकमा फौज व पुलिस के खिलाफ गलत प्रोपोग्रेंडा करने की गरज से एक पार्टी किसान सभा के नाम से कायम है। जो हर गांव में मीटिंग्ज करके इलाके के बाश्ंिादों को शामिल होने को तरजीह दे रही है। दरबार आली के कई फरमानों के बावजूद सभा के लोग रोज रोज ताकत पकड़ते जा रहे हैं। कांग्रेस के नक्शेकदमों पर चल कर एक अलग से गवर्नमेंट बना ली है। इस सभा के बनने से हकुमत और आवाम खतरे में पड़ गया है। ये लोग दरबार सिरमौर के अहकामात की कतई तामील नहीं करते हैं। खुल्लम-खुल्ला हकुमत के खिलाफ बगावत कर रहे हैं। इस वक्त पुलिस इस सभा के लीडरों की गिरफ्तारी के लिए पहुंची, तो उन्होंने इलाके के जमींदारान को बंदूक, तलवार, डांगरा, शफागंज, लाठी, कुल्हाड़ी, कृपाण, खुखरी से मुसल्ला मुकाबिले के लिए काफी तादाद में जमा किया। इसकी बिना पर अब तक दफा 144 के तहत कामकाज होता रहा। मगर इस गिरोह ने इस दफा की भी खिलाफवर्जी की और अपने तरीकात को जारी रखा। इस तरह ये बंद अमनी को इन्तहाई दर्जे तक पहुंचाते रहे। इसी दौरान जब संवत 25-2-2000 को इस गिरोह के लीडरों को कोटी गांव में गिरफ्तार करना चाहा, तो वहां 2000 की तादाद में लोग जमा हो गए। मुलाजमान पुलिस को मारपीट करके उनके कब्जे से जबरदस्ती असलाह वगैरह छीन कर अपने पास रखा। इलाके में हालात इंतहाई खतरनाक सूरत अख्तियार कर चुके हैं। लिहाजा दरबार आली अमन व सलामती कायम करने के लिए मार्शल लॉ लगाने का फैसला किया है और तमाम इलाका मिलट्री चार्ज में दे दिया गया है।
ऐसे फरमान को सुनकर किस आदमी की घिघ्घी नहीं बंध जाती है। मगर पझौता के ग्रामीणों ने इसका भी विरोध किया और अपनी जानों की भी परवाह नहीं की। इन्होंने हर ऊंची धार पर अपने कैंप लगाए और घर से बाहर रहने लगे। इसी दौरान उन्होंने मेजर बाम से मिल कर राजा सिरमौर से सीधी बात भी करनी चाही। मगर इस वार्ता को उसके वजीर रामगोपाल ने विफल कर दिया। वो महारानी का मुंहलगा मंत्री था। इसके बाद 21 मई 1943 को पझौता आंदोलन के मुखिया वैद्य सूरत सिंह के घर को डाईनामाईट से उड़ा दिया। इससे दहशत का माहौल खड़ा हो गया। मगर ये फिर भी नहीं झुके। फिर सेना ने कोटी में कलीराम शावगी का मकान डाईनामाईट से उड़ा दिया। यही वह 11 जून है, जिस दिन पझौता आंदोलनकारी उस ब्लास्ट को देखने जा रहे थे। सेना ने पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार उन पर गोलियां बरसाना आरंभ कर दिया। इस गोलीकांड में कमनाराम शहीद हो गए, जबकि मेहता तुलसीराम, कमाल चंद, जातीराम, हेतराम, सहीराम, चेतसिंह घायल हो गए। इस दिन को हर वर्ष गोलीकांड दिवस के रूप में मनाते आ रहे हैं। जोकि कुछ वर्षों से अब शहीदी दिवस के नाम पर मनाया जाता है।
11 जून 1943 का दिन प्रदेश के इतिहास में पझौता गोली कांड के नाम से जाना जाता है। आने वाले समय मे भी इसी नाम से याद किया जाता रहेगा। इस दिन राजा सिरमौर की सैना द्वारा राजगढ़ के सरोट नामक सथान से कुफरधार नामक स्थान पर जा रहे निहत्थे लोगों 1700 सौ राऊड़ गोलियां चलाई। इसमें कमना राम की मौके पर मौत हो गई। तुलसी राम, जाती राम, कमालचंद, हेत राम, सही राम, चेत सिंह घायल हो गए। इस सारी घटना के लिए सिरमौर के तत्कालीन राजा राजेंद्र प्रकाश के चुगल खोरो एवं चाटूकार राज्य कर्मचारी जिम्मेवार थे। ज्ञात रहे कि कल का पझौता क्षेत्र ही आज राजगढ़ के नाम से जाना जाता है। पझौता गोली कांड की वास्तविक घटना आज एक कहानी जान पड़ती है। परंतु जिन-जिन लोगों ने पहले मृत्यु दंड और आजीवन कारावास की सजा के चलते अपने जीने की इच्छा छोड़ दी थी। उनके लिए 15 अगस्त 1947 का दोहरी खुशी लेकर आया। उस दिन पूरा देश आजाद हुआ। वहीं नाहन जेल में बंद सजा काट रहे पझौता आंदोलनकारियों को भी रिहा किया गया। यही कारण है कि इन लोगों को सरकार द्वारा स्वतंत्रता सैनानी का दर्जा प्रदान किया गया। जिला सिरमौर के पझौता क्षेत्र के लोगों ने 40 के दशक में सिरमौर रियासत के राजा के खिलाफ बगावत कर दी। उस छोटी सी चिंगारी ने बाद में एक बड़े आंदोलन का रूप ले लिया। उस समय सिरमौर के राजा राजेंद्र प्रकाश ने अंग्रेजी शासन को सहारा देना आरंभ कर दिया। ये बात स्थानीय लोगों को अच्छी नहीं लगी। राजा द्वारा अंग्रेजी शासन को सहायता देने के लिए जो गतिविधियां आरंभ की गई। उसमें सरकारी कामों के लिए बैगार करवाना-जबरन सैनिक भर्ती-दस मण से अधिक अनाज सरकारी गोदामो में जमा करना शामिल था।
इससे स्थानीय लोगों में रोष भडक़ने लगा। लोगों ने सारे मामले का विरोध करने का मन बना लिया। इसी लिए नौ सदस्य वाली एक समिति का गठन किया गया। जिसमें मिया चंूचू को प्रधान, वैद्य सूरत सिंह को सचिव, गुलाब सिंह, अतर सिंह, मेहर सिंह, मदन सिंह, कली राम आदि को सदस्य चुना गया। इस समिति का पहला कदम था राजा द्वारा यहां बनाए गए जेलदारों व नंबरदारों द्वारा अपने पद से त्याग पत्र देना। इसी दौरान जिला सिरमौर में न्यायधीश के पद से डॉ. वाईएस परमार ने अपने पद से त्याग पत्र दे दिया। जैसे ही राजा सिरमौर को इस बात की भनक लगी, उन्होंने नाहन से 50 सैनिकों के दल को इस आंदोलन को कुचलने व समिति के सदस्य को पकडऩे के लिए क्षेत्र में भेजा। इस दल का नेतृत्व डीएसपी जगत सिंह कर रहे थे। उन्होंने क्षेत्र का दौरा करके नाहन जाकर अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। इसी दौरान राजा पटियाला चूड़धार की यात्रा पझौता क्षेत्र के शाया में रूके थे। उन्होंने इस आंदोलन का जायजा लिया और राजा सिरमौर को एक पत्र लिख कर इस आंदोलन को भारत छोड़ो आंदोलन की एक कड़ी बताया। परिणाम स्वरुप राजा ने इस आंदोलन को शांत करने व इनसें समझौता करने के लिए रेणुका के बूटी नाथ नारायण दत्त-दुर्गा दत्त आदि को पझौता क्षेत्र में भेजा। मगर ये लोग समझौता कराने में असफल रहे। उनके बाद राजा ने समिति के सदस्यों को समझौता करने के लिए नाहन बुलाया। मगर आंदोलनकारियों ने राजा के आग्रह को ठुकरा दिया। परिणामस्वरुप राजा ने आंदोलन को कुचलने के लिए पुलिस दल को भेजा।
6 मई 1943 को यह दल राजगढ़ पहुंचा। कुछ आंदोलन कारियों को राजगढ़ के किले में कैद कर लिया। 7 मई 1943 को कोटी गांव के पास आंदोलन कारियों व पुलिस के बीच मुठभेड़ हो गई। इसमें आंदोलनकारियों ने पुलिस दल को बंदी बना लिया। आंदोलन कारियों ने मांग रखी कि राजगढ़ किले में बंद आंदोलन कारियों को छोडा़ जाए। तभी वे पुलिस दल को छोड़ेंगे। 12 मई 1943 को पूरे क्षेत्र में धारा 144 लगा दी गई। पुलिस ने भाणत गांव के दया राम को आंदोलन कारियों से समभक्ता करने के लिए भेजा। मगर दया राम इसमें असफल रहे। उसके बाद आंदोलनकारियों को 24 घंटे में आत्मसमर्पण करने को कहा गया। मगर आंदोलनकारियों ने साफ मना कर दिया। उसके बाद सेना ने क्षेत्र में लूटपात आरंभ कर दी। 10 जून 1943 को सेना द्वारा कमेटी के सचिव सूरत सिंह व एक अन्य व्यक्ति कली राम के घर को डाईनामेट से उड़ा दिया। इस सारे प्रकरण को देखते हुए आंदोलनकारियों ने अपने घर छोड़ दिए व ऊंची पहाडिय़ों पर अपने कैंप बना लिए, ताकि वे सेना पर नजर रख सके। इसको देखते हुए सेना ने भी राजगढ़ के साथ ऊंची पहाड़ी सरोट नामक स्थान पर अपना कैंप बना लिया। 11 जून 1943 को निहत्थे लोगों का एक दल आंदोलन कारियों से मिलने जा रहा था। तो जिस समय कुफर घार के पास यह दल पहुंचा, तो सेना ने गोलियों की बौछार शुरू कर दी। रिकार्ड के अनुसार 1700 राउड़ गोलियां चली। इसमें कमना राम की मौके पर ही मौत हो गई। कुछ लोग घायल हो गए। आंदोलन कारी न्याय पाने के लिए कमना राम के शव को कंधे पर उठा कर 100 किमी अंग्रेजों के पोलिटिकल एजेंट के पास शिमला ले गए। मगर न्याय के बदले उन्हें हथकडिय़ां पहना दी गई। उन्हें वापिस राजा सिरमौर के पास भेज दिया गया। बाद में 69 लोगों को नाहन जेल में बंद कर दिया गया। बाकी लोगों को जुर्माना देकर छोड़ दिया गया। कमेटी के नौ सदस्यों की संपति को कुर्क कर दिया गया। इन सभी बंदी लोगों पर 14 महीने तक मुकदमा चलता रहा ।
कुछ समय बाद 14 लोगों को बरी कर दिया गया। 52 लोगों को आजीवन कारावास व दो लोगों दो-दो साल की सजा सुनाई गई। उसके बाद सिरमौर न्याय सभा के नाम एक न्यायालय की स्थापना की गई। जिसमें इस मुकदमे को पुन: चलाया गया। इसमें संचालन समिति के नौ सदस्यों को दो-दो साल की सजा सुनाई गई। 4 लोगों को 7 साल की सजा बाकी, लोगों को 5 साल की सजा सुनाई गई। इस बीच कनिया राम, विशना राम, कलीराम, मोहीराम ने जेल में ही दम तोड़ दिया। अन्य लोगों को 15 अगस्त 1947 को रिहा कर दिया गया। कुछ लोगों ने यहां इस गोलीकांड को जलियांवाला बाग गोलीकांड की संज्ञा दी गई, क्योंकि यहां पर भी जलियांवाला बाग की तरह निहत्थे लोगों पर गोलियां चलाई गई। आजादी के कुछ समय बाद उपभोक्ता स्वतंत्रता सैनानी कल्याण समिति का गठन किया गया। यह समिति हर वर्ष 11 जून को उपभोक्ता गोली कांड दिवस के रूप मे मनाती है। इस आंदोलन में अपना जीवन बलिदान देने वालों को श्रद्धांजली दी जाती है।