शिमला, 21 अक्टूबर : हिमाचल प्रदेश में चुनावी सरगर्मियां चरम पर हैं। प्रदेश की सियासत भाजपा और कांग्रेस के इर्द-गिर्द ही सिमटी रही है। इस बार भी मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही माना जा रहा है। हालांकि दिल्ली के बाद पंजाब में चमत्कारिक ढंग से सत्तासीन होने वाली आम आदमी पार्टी सभी 68 सीटों पर उम्मीदवार उतारकर चुनावी जंग को त्रिकोणीय बनाने की कवायद कर रही है।
यह सर्वविदित है कि प्रदेश में क्षेत्रीय दल अपना असर दिखाने में नाकामयाब रहे हैं। हर बार विधानसभा चुनाव में कई क्षेत्रीय दल अपनी उपस्थिति तो दर्ज करवाते हैं, लेकिन उनके उम्मीदवार विधानसभा की दहलीज नहीं लांघ पाते। इस बार स्वर्ण आंदोलन से निकली राष्ट्रीय देवभूमि पार्टी ने भी चुनाव मैदान में कूदकर भाजपा और कांग्रेस को ललकार दिया है। इसी तरह राष्ट्रीय लोकनीति पार्टी ने भी कई सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। प्रदेश के चुनावी इतिहास पर नजर दौड़ाएं तो आधे अधूरे प्रयासों के चलते यह दल चाहे हिमाचल विकास कांग्रेस हो या हिमाचल विकास पार्टी के अलावा बसपा, सपा, तृणमूल कांग्रेस इत्यादि हो, भाजपा और कांग्रेस के सामने तीसरे विकल्प नहीं बन पाए हैं।
पूर्व केंद्रीय मंत्री व कांग्रेस के दिग्गज रहे सुखराम ने वर्ष 1998 के विस चुनाव में पांच सीटें जीतकर सबको चौंका दिया था। सुखराम की पार्टी के सहयोग से प्रदेश में धूमल की सरकार बनी थी। लेकिन बाद में इस पार्टी का कांग्रेस में विलय हो गया था। यही हाल पूर्व सांसद व भाजपा नेता महेश्वर सिंह की हिमाचल लोकहित पार्टी का हुआ था और उन्होंने भी अपनी पार्टी का भाजपा में विलय कर दिया था।