नाहन, 13 मार्च : घर के जुगाड़ से पानी को शुद्ध बनाया जा सकता है। पौधे की जाइलम तकनीक से मात्र 10 से 15 रुपये खर्च कर जाइलम जैविक फिल्टर पानी को शुद्ध किया जा सकता है। स्कूलों की किताबो में पढ़ाया तो जाता है, लेकिन रियल लाइफ में छात्र प्रयोग नहीं करते है।
वैज्ञानिक परियोजना पर हिमाचल के सिरमौर जनपद की गुज्जर बस्ती में चल रहे सरकारी विद्यालय नौरंगाबाद में नौवीं की छात्रा वंदना ने इस दिशा में कार्य किया। जाइलम पौधों में जटिल स्थाई उत्तक (Tissue) होता है, जो पानी के संवहन में मुख्य भूमिका निभाता है। वंदना के इस प्रोजेक्ट को प्रदेश भर में तीसरा स्थान मिला है। हाल ही में वंदना को शिक्षा मंत्री ने सम्मानित भी किया है।
दरअसल, पौधे का जाइलम प्राकृतिक रूप से जल का पारगमन (Permeation) कर सकता है।इसी आधार पर जाइलम फिल्टर (Xylem Filter) कार्य करता है। जाइलम में मौजूद गुण जल को छानने का कार्य करते हैं। विशेष रूप से आयुष व जिम्नोस्पर्म पौधों (gymnosperm plants) का जाइलम अच्छे फिल्टर के तौर पर कार्य करता है।
स्कूली छात्रा वंदना ने गुर्जर समुदाय (Gujjar community) के लोगों से पशुओं की दवा तैयार करने की तुंबा कोड़ी विधि के बारे में सुना था, जिसमें सूखे घीये के खोखले भाग में जड़ी-बूटी पीसकर उसका घोल भरने के बाद उसके एक हिस्से में नीम का हरा तना फंसा कर उल्टा लटकाया जाता है। इसके बाद नीम के तने से घोल बूंद-बूंद कर टपकने लगता है।
इस तकनीक का इस्तेमाल वंदना ने लेक्चरर संजीव अत्री के साथ किया। इसी बात को वैज्ञानिक आधार बनाकर पौधे के जाइलम का प्रयोग पानी छानने के लिए किया। पहले नीम के पौधे के हरे तने का प्रयोग किया। बाद में जामुन व साल के पेड़ो के जाइलम इस्तेमाल में लाया गया। चीड़ के जाइलम (pine xylem) से पानी के निकलने की गति तेज पाई गई।
वंदना ने पाया कि सूखी लकड़ी के जाइलम से पानी का प्रवाह तीव्र हुआ। उन्होंने कहा कि इस तकनीक में पानी के भीतर चूना व चीनी (Sugar) डालकर इस्तेमाल किया गया था। इसके बाद जो फिल्टर होकर निकला, उसमें न तो चूने का रंग था, न ही मीठा था। फिर भी इस तकनीक से जल की जैविक (organic) और अजैविक अशुद्धियों (abiotic impurities) की जांच प्रयोगशाला में कराएंगे।
स्कूल के मुख्याध्यापक एवं गाइड टीचर संजीव अत्री ने बताया कि इस प्रयोग के बारे में उन्होंने नौरंगा बाद क्षेत्र के स्थानीय लोगों को भी समझाया है। इस प्रकार का फिल्टर कम लागत में तैयार हो सकता है। इसे किसी भी बर्तन में प्रयोग किया जा सकता है।
ऐसे तैयार की तकनीक….
वंदना ने इस फिल्टर को बनाने के लिए दो छोटे मटकों की तली में छेद किया। छेद में रबड़ का पाइप फंसाकर इसके आखिरी सिरों पर जाइलम युक्त तने के टुकड़े लगाए। पहले घड़े से पानी दूसरे घड़े में फिल्टर हुआ। फिर दूसरे घड़े से पानी फिल्टर होकर तीसरे में पहुंचा। यह पानी पूरी तरह शुद्ध था।