शिमला, 9 जुलाई : जनमानस के दिलों में राज करने वाला जननायक जब दुनिया से रुखसत होता है तो पीछे का माहौल कैसा होता है, ये इस समय समूचा हिमाचल ही नहीं बल्कि देश भी देख रहा है। सोशल मीडिया में श्रद्धांजलि देने वालों का सैलाब ही उमड़ा हुआ है। रिज मैदान पर हुजूम उमड़ा तो कांग्रेस कार्यालय में भी हर कोई अंतिम दर्शन का मौका नहीं चूकना चाहता था।
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के पहुंचने की तो संभावना थी, मगर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने दलगत राजनीति से ऊपर उठकर अपने तमाम कार्यों को स्थगित इस कारण किया, क्योंकि वो सदी के जननायक को श्रद्धा सुमन अर्पित करना चाहते थे। नड्डा ने श्रद्धा सुमन अर्पित करने के बाद आगे बढ़कर वीरभद्र सिंह की पार्थिव देह को कुछ देर तक निहारा। जमीन पर बैठकर परिवार को सांत्वना भी दी।
बता दें कि चंद रोज पहले भी नड्डा आईजीएमसी स्व. वीरभद्र सिंह का कुशलक्षेम पूछने पहुंचे थे। मगर मुलाकात संभव नहीं हो पाई थी।
शिमला से रामपुर तक गमगीन से पहाड़…
शुक्रवार दोपहर बाद हिमाचल की राजधानी शिमला ने सदी के जननायक वीरभद्र सिंह को अंतिम विदाई दी। वाहनों की लंबी कतार में पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की पार्थिव देह की रामपुर की तरफ रवानागी हुई। रास्ते में शायद ही कोई ऐसी जगह थी, जहां उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए हजूम न उमड़ा हो।
कई तस्वीरें तो ऐसी भी सामने आई, जब सुरक्षा कर्मियों को भी खासी मशक्कत करनी पड़ी। खुले वाहन में अपने पिता की पार्थिव देह के साथ विधायक विक्रमादित्य सिंह ने रामपुर तक का सफर तय किया। चंद घंटों की इस यात्रा के दौरान वीरभद्र सिंह अमर रहे-अमर रहे के नारे गूंजते रहे। मानों पहाड़ों की ऊंची चोटियां भी गमगीन हो उठी हों।
पदम पैलेस में आखिरी रात…
9 जुलाई 2021 को जननायक वीरभद्र सिंह की रामपुर के पदम पैलेस में आखिरी रात होगी। शनिवार दोपहर 3 बजे वो पंचतत्व में विलीन हो जाएंगे। इससे पहले इकलौते बेटे विक्रमादित्य सिंह को बुशहर रियासत की राजगद्दी दे दी जाएगी। जन्मस्थली में सुबह 8 बजे से दोपहर 2 बजे तक पार्थिव देह को अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा। बुशहर रियासत की बागडोर वीरभद्र सिंह ने 13 साल की उम्र में संभाली थी। जननायक वीरभद्र सिंह के पिता पदमदेव का देहांत 1947 में हुआ था। अंतिम संस्कार से पहले वीरभद्र सिंह का राजतिलक किया गया था।
शायद ऐसा भी पहली बार…
हिमाचल के इतिहास में शायद ऐसा पहली बार हुआ होगा, जब किसी जननायक की पार्थिव देह को ऐतिहासिक रिज मैदान पर अंतिम दर्शनों के लिए रखा गया हो। हालांकि इस बात को लेकर पूरी तरह से पुष्टि नहीं हुई है कि क्या पहले भी ऐसा हुआ है या नहीं। अलबत्ता, इतना जरूर है कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की अस्थियों को कुछ समय के लिए रिज मैदान पर रखा गया था।
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मां भीमाकाली के उपासक…
स्व. वीरभद्र सिंह ताउम्र मां भीमाकाली के उपासक रहे। मां भीमाकाली का मंदिर रामपुर बुशहर से करीब 30 किलोमीटर दूर सराहन में स्थित है। कालीमाता का प्राचीन मंदिर बेजोड़ अनूठी शैली का नमूना है। ऐसा माना जाता है कि मंदिर का निर्माण 800 से 1000 वर्ष से पहले हुआ। मंदिर हिन्दू व बौद्ध शैली का मिश्रण है। नए मंदिर का निर्माण 1943 में हुआ था। हमेशा आम लोगों में एक बात चर्चा में रही है कि वीरभद्र सिंह को मां भीमाकाली का आशीर्वाद प्राप्त था, इस कारण वो अपने विरोधियों को मात देने में सफल हो जाते थे।
शायद ही टूटेगा रिकाॅर्ड…
6 बार मुख्यमंत्री बनने का रिकाॅर्ड हिमाचल में शायद ही फिर कोई तोड़ पाएगा। ज्योति बसु के बाद देश में सबसे अधिक बार सीएम रहने वाले वीरभद्र सिंह दूसरे व्यक्ति थे। सूबे की मौजूदा राजनीति में ऐसा कोई भी चेहरा नजर नहीं आता, जो जननायक का रिकाॅर्ड तोड़ पाएगा। यही नहीं, केंद्र सरकार में भी जिम्मेदारी निभाई तो संगठन में भी बड़े ओहदों पर रहे। 1998 से 2003 के बीच नेता प्रतिपक्ष़्ा की जिम्मेदारी को भी निभाया। करीब 60 साल के राजनीतिक जीवन में उतार-चढ़ाव से विचलित नहीं हुए।
बनना चाहते थे प्रोफैसर…
बचपन से ही राजा वीरभद्र सिंह को दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफैसर बनने का शौक रहा। मगर पंडित जवाहर लाल नेहरू के आग्रह पर वो राजनीति में आ गए।
राजा तो था राजा…
राज्य में कई ऐसे विधानसभा चुनाव भी हुए, जब विपक्ष ने उनके नाम के आगे राजा लिखे जाने पर आपत्तियां दर्ज करवाई। मामले चुनाव आयोग तक भी पहुंचते थे। मगर मजाल है कि लोग उन्हें राजा न कहें। अब भी जब दुनिया से रुखसत हुए तो तमाम जगहों पर उनके नाम के आगे राजा ही लिखा जा रहा है।
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बेशक ही रियासतों का अंत हो गया था, लेकिन शाही घरानों में आज भी सदियों पुरानी परंपराओं को वहन करने का चलन जारी है। इसी के मद्देनजर राजघराने की रिवायत के मुताबिक राजा वीरभद्र सिंह की अंत्येष्टि से पहले विक्रमादित्य का राजतिलक होगा। वीरभद्र सिंह ने जीवन में ये साबित कर दिया कि प्रजा के दिल में होें तो ही राजा बना रहा जा सकता है।
तो ये थी जननायक बनने की वजह…
राजनीति में अक्सर यही बात मायने रखती है कि राजनीतिज्ञ का जनाधार क्या है। अक्सर ही राजनीति करने वाले जातिवाद, भाई भतीजावाद, बेईमानी व क्षेत्रवाद में उलझ जाते हैं। लेकिन वीरभद्र सिंह इन बातों से कोसों दूर रहे। यही वजह है कि आज उनके दुनिया से रुखसत होने पर हर कोई गमगीन है। यहां तक की विपक्ष के नेता भी उन्हें पब्लिक का रियल लाइफ हीरा बताने में गुरेज नहीं कर रहे।