नाहन (रेणु कश्यप): क्या आप जानते हो कि 53 साल पहले शहर में एक ऐसा स्थान ढूंढा गया था, जहां चंद मिनट बैठकर ही सकून मिलता था। 1962 में शांति संगम की नींव बेहतरीन मूर्तिकार सनत कुमार चटर्जी ने रखी थी। 1962 में चटर्जी की तैनाती नाहन में राजकीय आटर्स कॉलेज में बतौर लेक्चरार हुई थी। उस समय चटर्जी दो बार लखनऊ अपने घर लौट गए थे, लेकिन बंगाल के मशहूर कलाकार असीत कुमार ने चटर्जी को वापिस बुलवाया।
चटर्जी 9वीं कक्षा से ही मूर्तियों में जान फूंकने के माहिर हो गए थे। चटर्जी जब वापिस नाहन लौटे तो उन्होंने आर्ट की शिक्षा तो दी ही, साथ ही शांति संगम में 22 ऐसे जीवांत मूर्तियों का निर्माण कर दिया, जो आज भले ही टूट-फूट चुकी है, लेकिन अपना आकर्षण कायम रखे हुए है। इसके निर्माण के लिए चटर्जी ने सीमेंट व टेरीकोटा का इस्तेमाल किया था। इसके बाद रेणुका झील के किनारे भी 8 मूर्तियों में जान डाली थी। इसके बाद चटर्जी शिमला शिफ्ट हो गए। समय तेजी से करवट लेता रहा। इसके साथ-साथ ही शांति संगम भी नजरअंदाज हो गया।
इस वक्त हालात यह है कि शांति संगम अनदेखी का शिकार है। 53 साल पहले जब चटर्जी ने जीवांत मूर्तियों का निर्माण किया होगा, तब शायद उन्हें अंदाजा नहीं होगा कि इस खूबसूरत स्थली को अगली पीढिय़ां नहीं देख पाएंगी। इस तरह की मूर्तियों का निर्माण करना अब संभव नहीं लगता है।
क्यों नहीं हुआ अधिग्रहण?
शांति संगम की मलकियत को लेकर विवाद बनता रहा है। यहां एक प्राचीन नरसिंह देवता का मंदिर भी मौजूद है। बड़ा सवाल यही है कि पर्यटन के मकसद से इस स्थान का अधिग्रहण क्यों पर्यटन विभाग द्वारा नहीं किया गया। बड़ी आसानी से दलील दे दी जाती है कि शांति संगम सरकारी संपत्ति नहीं है। फिर प्रश्न पैदा होता है कि जनहित में सरकार कई कार्यों के लिए भूमि अधिग्रहण कर लेती है, तो इसका अधिग्रहण क्यों नहीं हुआ? नगर परिषद को कम से कम इसके रखरखाव की जिम्मेदारी दी जा सकती है।