शिमला, 09 फरवरी: सूबे के सबसे बड़े अस्पताल आईजीएमसी में मरीजों के खाने को आउट सोर्स करने के दौरान हुई टैंडर प्रणाली में घोटाले के हिमाचल युवा कांग्रेस के आरोपी को अस्पताल प्रशासन ने पूरी तरह खारिज कर दिया है। आईजीएमसी प्रशासन का कहना है कि अस्पताल में मैस की टैंडर प्रणाली में किसी तरह का घपला व अनियमितताएँ नहीं हुई हैं। पूरी पारदर्शिता के साथ निकाले गए ई-टैंडर में शर्तें पूरी करने वाली कंपनियों ने हिस्सा लिया और इसमें गड़बड़ झाला के आरोपी निराधार हैं।
मंगलवार को प्रैस वार्ता में डा. रजनीश पठानिया ने कहा कि आई.जी.एम.सी. की रोगी कल्याण समिति द्वारा मैस को चलाने में काफी दिक्कतें आ रही थीं, इसलिए मैस को आउट सोर्स करने का निर्णय लिया गया। इसके लिए ई-टैंडर हुए। टैंडर की तकनीकी बोली दिनांक 13 अगस्त 2020 को खोली गई थी,
जिसमें चार फर्मों ने भाग लिया था। समिति द्वारा इन बोलियों की तकनीकी जांच की गई। दस्तावेज़ों की जांच करने पर एक फर्म को समिति द्वारा अयोग्य घोषित किया गया, जबकि तीन फर्म ने तकनीकी रूप से क्लीयरैंस प्राप्त की। चूंकि तीन फर्मों ने तकनीकी बोली में क्लीयरैंस प्राप्त की थी। लिहाजा एचपीएफआर 2009 की स्थिति के अनुसार वितीय बोली 21 सितंबर 2020 खोली गई थी और मेसर्स नूविजन कमर्शियल एंड एस्कॉर्ट सर्विसेज को एल -1 फर्म के रूप में घोषित किया गया था। इसके बाद समिति द्वारा एल-1 को दिनांक 2 दिसंबर 2020 वार्ता के लिए बुलाया गया था। बातचीत के दौरान प्रस्तावित दर में लगभग 10 प्रतिशत की कमी की गई। चूंकि आहार सेवा का वित्तीय भार आर.के.एस. वहन करने की स्थिति में नहीं है, इस कार्यालय ने लेटर नंबर आर.के.एस. एम.एस. समिति डाइट 1072-73 तिथि 15-12-2020 को एल -1 को अनुबंध देने के साथ-साथ वित्तीय अनुदान प्राप्त करने के लिए अनुमोदन की मांग की।
उन्होंने यह भी कहा कि टैंडर प्रणाली में गड़बड़ी के आरोपों की सत्यता जाँचने के लिए जांच बिठाई गई है, जिसकी रिपोर्ट जांच कमेटी दो हफते के भीतर सौंपेगी। कमेटी की रिपोर्ट में अगर कोई अनियमिताएं पाई जाती है, तो टैंडर को रद्द कर दिया जाएगा।
आईजीएमसी के एम.एस. डा. जनक राज ने कहा कि आईजीएमसी में मैस चलाने के लिए कुक के 16 पद सृजित किए गए थे, जिनमें से वर्तमान में 3 ही कुक काम कर रहे है। 16 रेगुलर रसोएया रखने के लिए एक वित् वर्ष में 40000 के प्रति माह वेतन के हिसाब से सरकार पर 76,80,000 रूपए का वित्तीय बोझ पड़ता है और साथ ही रेगुलर हेल्पर्स, वेटर्स, सफाई कर्मचारी रखने के लिए एक वित् वर्ष में 30,000 के प्रति माह वेतन के हिसाब से सरकार पर 1,26,00,000 रूपए का वित्तीय बोझ पड़ता है, जो की लगभग 2 करोड़ बनता है। मरीजों के लिए तैयार होने वाले राशन की कीमत 1.26 करोड़ रूपये बनती है। इस तरह साला लगभग 4.75 करोड़ का खर्चा बनता है। इसमें पी सर्विस टैक्स, ई.पी.एफ., किचन गैस, बिजली, कूड़े का निपटना, खाना बनाने और बांटने के लिए प्रयोग होने वाले सभी तरह के यंत्र का खर्चा भी शामिल है।