आनी/राकेश कुमार : हरी-भरी ऊंची पहाड़ियां, सर्पीली सडकें, ढलानदार सीढ़ी नुमा खेतों को देखकर यहां मन ठहर जाता है। कुल्लू का आऊटर सिराज आनी को प्रकृति ने सुंदरता कुछ इस कतर बक्शी है, कि भारत को आजाद होने से पहले ही यहां तक अंग्रेजों ने सडक़ पहुंचा दी थी। तब अंग्रेजों का इस घाटी में अधिक आना-जाना लगा रहता था।
आज हम बात कर रहे हैं आनी खंड की ग्राम पंचायत बखनाओ के तहत ऊंचाई पर बसे गांव गाड़ा-डीम की।
समुद्रतट से करीब 2429 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह गांव काफ़ी खूबसूरत है। यहां लोग देवी-देवताओं के प्रति गहरी आस्था रखते हैं। यहां के सरोआ नामक स्थान पर हजारों वर्ष पुरानी मूर्तियां आज भी मौजूद है। क्षेत्र के लोगों की देऊरी स्थित माता दुर्गा के प्रति असीम स्नेह है। सादा जनजीवन व्यतीत करने वाले यहां के लोग बहुत मेहनती है। सेब बहुल क्षेत्र होने के कारण यहां के लोग अक्सर अपने खेतों में काम करते हुए पाए जाते हैं। अब तो यह क्षेत्र सड़क-सुविधा से भी जुड़ना शुरू हो गया है। जिससे यहां के पर्यटन स्थलों तक पहुंचने में आसानी रहेगी।
आनी मुख्यालय से आनी-चवाई-दलाश मार्ग से 18 किमी दूर पुनन से यहां के लिए लिंक रोड़ जाता है। क्षेत्र में राजकीय प्राथमिक पाठशाला और माध्यमिक पाठशाला डीम समेत उपडाकघर और उप स्वास्थ्य केंद्र भी मौजूद है। यहां नई शैली में बने घरों के अलावा पुरातन काष्ठ शैली में बने कुछ बहुमंजिला घरों को भी देखा जा सकता है। इन मकानों की ख़ासियत है कि आधुनिक तौर-तरीकों से बनाए घरों की अपेक्षा अधिक गर्म रहते है। इनमें प्रयोग हुई लकड़ी की सुगंध काफ़ी मनमोहक होती है।
सदियों में यहां भारी-बर्फ़बारी होती है। तब अक्सर सदियों से बचने के लिए पुरानी शैली में बने मकानों में जाकर तंदूर का आनंद उठाते है। गाड़-डीम से और अधिक ऊंचाई पर खनोरा, जगत सुख और नहनु जैसे पर्यटक स्थल है जहां अक्सर गर्मियों में काफी लोग जाते हैं और प्राकृतिक सुंदरता का आनंद उठाते हैं। क्षेत्र के युवा सरोआ नामक स्थान पर खेल-गतिविधियों का भी मज़ा लेते हैं। यहां का महिला मंडल स्वच्छता, शिक्षा, बेटी-बचाओ और महिला सशक्तिकरण के लिए जाना जाता है। यहां की महिलाएं आए दिन गांव में रास्तों, नलियों और पेयज़लों स्रोतों की साफ-सफ़ाई में अपना अमूल्य योगदान देती हैं। महिला सशक्तिकरण का एक अनूठा उदाहरण यहां की महिलाएं पेश करती हैं। आऊटर सिराज के सुप्रसिद्ध जिला स्तरीय आनी मेले में लगातार इन महिलाओं ने सैंकड़ों महिलाओं को पछाड़कर रस्सा-कस्सी प्रतियोगिता में अपना दबदबा बरकरार रखा है।
पर्यावरण संरक्षण में भी यहां के महिला मंडल समेत अन्य लोगों का भरपूर योगदान मिलता है। जिससे यहां के गहने देवदार समेत अन्य पेड़-पौधें आज भी यहां बने हुए हैं ।
गांव में पशु धन को भी देखा जा सकता है। गाय, भेड़-बकरियां भी यहां के लोग पालते हैं।
सड़क सुविधा से जुड़ रहे इस गांव में पहुंच कर यहां के पर्यटक स्थलों को निहारना अब आसान होगा। यदि सरकार की नजर-ए-इनायत हो तो यहां कई खूबसूरत स्थलों को विकसित किया जा सकता है।