कुल्लू : बाह्य सिराज के प्रवेश द्वार लूहरी से मात्र 3 किलोमीटर दूर खेगसू में आदि शक्ति मां कुसुम्भा भवानी का प्राचीन एवं ऐतिहासिक मंदिर स्थित है। मंदिर में अष्ट धातु से निर्मित अष्टभुजा वाली दुर्गा मां सिंहासन पर विराजमान है, जो नवदुर्गा में चौथी देवी कुष्माण्डा मानी गई। यह मंदिर पीपल, चंपा आदि वृक्षों से आच्छादित सतलुज नदी के तट पर सड़क किनारे अवस्थित है। कुसुम्भा भवानी भक्तों की सदैव रक्षा करती है तथा उनको मनचाहा वरदान देती है। तभी इसका यश दूर-दूर तक फैला है।
बताया जाता है कि खेगसू में देवी की स्थापना भगवान परशुराम ने काली माता के रूप में की थी। इसे लोग काली खैई भी कहते हैं। बस्ती का उद्धार करने के लिए उन्होंने यहां काली माता की स्थापना की थी । मां की पूजा यहाँ सतलुज से लाए गए पानी से की जाती है। कहा जाता है कि खेगसू में किसी समय बहुत आबादी थी। फली-फूली बस्ती यहाँ किसी समय काल का ग्रास बनी परिणामस्वरुप यहां लोग अपने कर्म से पतित होते जा रहे थे। लोगों में पाप कर्म व अनाचार काफी बढ़ चुका था। दैवयोग से किसी समय यहां भगवान परशुराम भ्रमणवश आए।
साधु वेश में आए श्री परशुराम जो थके मांदे व भूखे प्यासे थे, यहां एक स्थान पर बैठ गए। गांव के लोगों ने प्यासे आगंतुक को पानी के लिए पूछा भी नहीं। फलस्वरुप भगवान परशुराम रुष्ट होकर चल दिए। कुछ दिन बाद यह पूरी बस्ती तहस-नहस हो गई और जीवित संस्कृति का विनाश हुआ। भगवान परशुराम एक दिन दोबारा यहां आए और खेगसू में देवी की स्थापना की जो यहां काली खैई के रूप में स्थापित है। अष्ट धातु से निर्मित माता की मूर्ति तो यहां बाद में कारीगर द्वारा बनाई गई है।
खेगसू माता 3 रियासतों की देवी मानी गई है। कुल्लू, कुमारसैन तथा कोटगढ के लोग इस देवी को अपने इष्ट से संबंध जोड़ते हैं। माता की अपनी माफी व जागीर भी है। ये जागारें खेगसू के अलावा खेखर, सैंज, प्राणु, रठोह तथा रोपड़ी है। श्रद्धालु यहां दूर-दूर से दर्शन करने आते हैं। नवरात्रों, मकर सक्रांति तथा बड़े-बड़े पर्वों में तो यहां भक्तों का तांता लगा रहता है। वे यहां माता से अपनी सभी मनोकामना को पूर्ण होने का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
– उमाशंकर दीक्षित