ऊना, 3 दिसंबर : प्रदेश के सबसे वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी सत्यमित्र बख्शी का गुरूवार को निधन हो गया है। बख्शी ने अपने निवास स्थान कांग्रेस गली ऊना में 94 वर्ष की आयु में अंतिम सांस ली। मौत की खबर पाते ही पूरे शहर सहित जिला में शोक की लहर दौड़ गई। अंतिम दर्शनों के लिए लोगों का हजूम एकत्रित हो गया। बता दें कि सन् 1926 में पिता बाबा लक्ष्मण दास आर्य व माता दुर्गा बाई आर्य के घर में सत्यमित्र बख्शी ने जन्म लिया। सत्यमित्र का पालन पोषण आजादी की जंग में सहयोग कर रहे परिवार के बीच हुआ।
सत्यमित्र बख्शी आर्य ने जब मां कहना सीखा तो उसी समय उनके कानों में देश की आजादी के नारे गूंजने लगे। बाल्यकाल में ही सत्यमित्र भारत के स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बन गए। 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्हे अंग्रेजी शासन ने हिरासत में लिया और 9 महीनों के लिए जेल भेज दिया। भगत सिंह के साथ किशोरी लाल के साथ सत्यमित्र बख्शी ने लाहौर जेल में 9 माह की सजा काटी।
सत्यमित्र बख्शी का पूरा परिवार स्वतंत्रता सेनानी रहा। माता-पिता व बड़े भाई सत्य प्रकाश बागी के साथ सत्यमित्र बख्शी भी स्वतंत्रता संग्राम में आजादी का नारा लेकर बुलंद करते रहे। खास बात यह है कि 1905 में सत्यमित्र के परिवार ने ऊना में आजादी के संघर्ष को आगे बढ़ाया। सत्यमित्र बख्शी ने अपने घर को श्री राम भारत माता मंदिर बना दिया है। जहां घर के दरवाजे से अंदर की दीवारोंं में स्वतंत्रता आंदोलन की यादें संजोई गई हैं। 94 वर्ष की आयु तक सत्यमित्र बख्शी ने गुलामी का दंश व स्वतंत्रता का उल्लास देखा है। बनते से बिगड़ता देश देखा है। बख्शी ने बताया था कि 18वीं सदी में पुलिस का काम अंग्रेजों व उनके वफादारों की रक्षा करना था।
इसके अलावा जो अंग्रेजों के विरूद्ध बोलता था, उसे कुचलना था। पुलिस अंग्रेजों के लिए ईमानदार थी, आजादी के परवानों के लिए क्रूर थी। आम मामलों में पुलिस का दखल नही है। इसलिए कुछ लहजे मेंं वह बेहतर थे। कुछ पुलिस कर्मी देश भक्त भी थे। ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं। बख्शी बताते थे कि उस समय स्वास्थ्य के प्रति अधिक जागरूकता थी। लोग मेहनत करते थे और शुद्ध खाना था। आयुर्वेद व वैद्य का सहारा होता था। शरबत मिलते थे। हार्ट, बीपी, शुगर यह नाम तो सुने तक नही थे। अध्यात्म तो हमारी विचारधारा थी। इन्सानी हमदर्दी सभी के अंदर थी। अंग्रेजों ने अस्पताल खोले, खानपान बिगाड़ा और आज उसी के कारण अस्पताल पहुंच रहे हैं।
सत्य मित्र बक्शी आजादी की लड़ाई के बाद भी लगातार समाज के कार्यों में सक्रिय रहे। उन्होंने मिलने वाली पेंशन का अधिकतर हिस्सा जरूरतमंद बच्चों की शिक्षा में और छात्रवृत्ति देने में लगाया। वही अपने घर को भारत माता का मंदिर बना करके रखा जहां रोज वे भारत माता की जय कार करते थे। सत्यमित्र बख्शी का अंतिम संस्कार चार दिसंबर को किया जाएगा।