शिमला, 22 नवंबर : लला मेमे फाउंडेशन के उपाध्यक्ष डॉ. चंद्रमोहन परशीरा ने बताया कि पश्चिमी हिमालय के विख्यात इतिहासकार एवं विद्वान छेरिंग दोरजे के अकस्मात निधन से हिमालयी समाज को अपूरणीय क्षति हुई है। उन्होंने कहा कि छेरिंग दोरजे हिमालय के जीते जागते नालन्दा थे, जिन्होंने अपने धर्म, इतिहास, संस्कृति, भाषा, बनस्पति विज्ञान आदि अनेकों विषयों पर असीमित ज्ञान के प्रकाश से कई दशकों तक मानव समाज की सेवा की है।
उन्होंने पूर्व मंत्री एवं चुनाव आयुक्त एमएस गिल से लेकर विख्यात चित्रकार शोभासिंह एवं निकोलस रोरिक तक के परिवारों का लंबे समय तक विभिन्न विषयों पर मार्गदर्शन किया था। उन्होंने हिमालयी क्षेत्र में अनेकों बौद्ध भिक्षुओं को उनके धार्मिक साधना में भी बहुत मदद की है, जिसका जीवंत उदाहरण बारह वर्ष लाहौल के एक गुफा में ध्यानस्थ रह कर विश्व भर में विख्यात हुई इंग्लैंड निवासी भिक्षुणी जेतसुनमा टशी पल्मो है।
परशीरा ने कहा कि ऐसे महापुरुष का जाना एक पूरे इतिहास के जाने के बराबर है और उनकी ज्ञान साधना की धारा को अविरल रखने के लिए लला मेमे फाउंडेशन अगले वर्ष से इतिहास, भोटी भाषा, पर्यटन, एवं भूगोल आदि विषयों में विशेष पदक एवं छात्रवृति आरंभ करेगा। इसी के साथ हिमालयी ज्ञान और इतिहास पर आधारित एक शोद्ध केंद्र की भी शुरुआत की जाएगी। फ़ाउंडेशन के अध्यक्ष मंगल चंद मनेपा ने कहा कि छेरिंग दोरजे जी लला मेमे फॉउंडेशन के संरक्षक थे।
पूरा फाउंडेशन परिवार इस समय शौक ग्रस्त है, यदि कोरोना का कहर नहीं होता तो वह निश्चित ही एक भावभीनी श्रद्धांजलि का आयोजन करते जो अब 15 फरवरी को लला मेमे पुण्यतिथि के दिन किया जाएगा। फाउंडेशन के वरिष्ठ सदस्यों कर्नल प्रेम चंद, प्रेम लाल प्रधान, सोनम राम, नील चंद टेलंगवा, शकुन, सुषमा, रंजीत क्रोफा, विपिन शाशनी, मोहन लाल रेलिंगपा, शेर सिंह मनेपा, अभय चंद राणा ने छे़रिंग दोरजे के अकस्मात निधन पर गहरा दुख प्रकट करते हुऐ इसे हिमालयी समाज के लिए बहुत बडी हानि करार दियाl