एक बार फिर आंखें नम करने वाला घटनाक्रम
सोलन, 13 अक्तूबर: वैश्विक महामारी (Global epidemic) में पहले भी कई बार ऐसे मामले सामने आ चुके हैं, जिन्हें पढ़कर आपका दिल पसीज गया होगा। अब ताजा मामला भी आंखें नम करने वाला है। सोचिए, कोरोना की वजह से एक पिता की लाश बेटे के सामने पड़ी हो। बेबसी ये थी कि शव को श्मशानघाट (graveyard) तक ले जाने के लिए कोई वाहन न था। ऐसा प्रतीत हुआ, जैसे प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग भी घुटने टेक चुका हो। एमएमयू (MMU) के अस्पताल में सोमवार शाम एक शख्स की कोरोना के कारण मौत हो गई।
प्रोटोकाॅल (Protocol) के मुताबिक शव वाहन व पीपीई किट (PPE Kit) का इंतजाम स्वास्थ्य विभाग (Health Department) को ही करना था। मंगलवार दोपहर तक जब वाहन उपलब्ध नहीं हुआ तो बेबस बेटे ने ही पीपीई किट पहन ली। साथ ही अपने पिता के शव को लेकर श्मशानघाट तक पहुंचा।
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आप खुद ही अंदाजा लगा लीजिए, जिस बेटे को अपने पिता के सिर पर आंसू बहाने तक का मौका न मिला हो, उसे इस तरीके से अंतिम संस्कार करना पड़ा हो। ऐसी विषम परिस्थितियों में सामाजिक संस्थाओं द्वारा चलाए जा रहे शव वाहनों के चालकों ने भी हाथ खडे़ कर दिए हैं। प्रतिनिधियों (representatives) का कहना था कि शव वाहनों को सेनिटाइज (Sanitize) व वॉशिंग (Washing) के लिए कोई तैयार नहीं होता। ऐसे में वे कोरोना के कारण मौत के आगोश में समाए लोगों को श्मशानघाट तक पहुंचाने में अक्षम हैं।
बता दें कि मृतक के बेटे को रोटरी क्लब ने वाहन तो उपलब्ध करवा दिया था, लेकिन इसका चालक उपलब्ध न होने की सूरत में खुद ही वाहन चलाकर शव को मोक्षधाम तक पहुंचाना पड़ा। वहीं इस बारे प्रशासनिक अधिकारियों की प्रतिक्रिया ली गई तो उनका कहना था कि वाहन खराब है। उल्लेखनीय है कि करीब 4 से 5 हफ्ते पहले भी सिरमौर के नौहराधार क्षेत्र में भी एक पिता को अपने 15 साल के बेटे के शव को निजी वाहन में लेकर गांव आना पड़ा था। हालांकि बेटा कैंसर से पीड़ित था, लेकिन शिमला में मौत की वजह कोरोना भी रही।
उल्लेखनीय है कि सोलन में भी कोरोना महामारी के दौरान बरती गई लापरवाहियां (Carelessness) पहले भी सामने आ चुकी हैं। एक महिला को बेवजह ही तीन महीने तक कोविड सैंटर (Covid Centre) में रहना पड़ा था। वहीं, कोविड केयर सैंटर में परोसे जाने वाले खाने की गुणवत्ता पर भी कई बार सवाल उठे।