रिकांगपिओ (जेएस नेगी) : हिमलोग जागृति मंच किन्नौर, जिला वन अधिकार संघर्ष समिति किन्नौर व हिमनीति अभियान हिमाचल प्रदेश के संयुक्त तत्तवाधान में शनिवार को बचत भवन रिकांगपिओ में एक दिवसीय सम्मेलन आयोजित किया गया।
इस सम्मेलन में हिमनीति अभियान के संयोजक गुमान सिह, दिल्ली एन्वायरनीकस संस्था के संयोजक श्रीधर, हिमलोक जागृति मंच किन्नौर के संयोजक सेवानिवृत आईएएस अधिकारी आरएस नेगी, जिला वनाधिकारी संघर्ष समिति अध्यक्ष जियालाल, उपाध्यक्ष सीताराम, महासचिव रामचंद नेगी, भगत सिंह किन्नर आदि वक्ताओं ने जनजातीय क्षेत्र किन्नौर में वनअधिकार अधिनियम 2006 को लागू करने, पंचायती राज अधिनियम की धारा-122 के तहत अपात्रता बारे, वनभूमि पर कब्जों को बेदखली बारे, वनाधिकारी अधिनियम के तहत पात्र लोगों को नौतोड मंजूर करने, जलविद्युत परियोजनाओं से समस्याओं, जनजातीय कानूनों का प्रभारी क्रियान्वयन पर विस्तार से जानकारी देने के साथ लोगों से संयुक्त चर्चा की गई।
इस बैठक में जिला के पंचायती राज संस्थानों वे जुड़े प्रतिनिधियों सहित कई लोगों ने भाग लिया। सम्मेलन केे बाद उक्त संस्था के पदाधिकारियों ने उपायुक्त किन्नौर एनके लठ के माध्यम से प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के ज्ञापन भी भेजा। ज्ञापन में कहा है कि जिला किन्नौर में वनअधिकार अधिनियम के तहत जिला से अब तक 2614 व्यक्तिगत व 54 सामूदायिक दावे ग्रामसभा से पारित कर उपमंडल समितिव जिला समिति को भेजा है, लेकिन अब तक कोई भी दावा मंजूर नहीं हुआ हैं। इसे शीघ्र मंजूर की मांग की है।
वक्ताओं ने कहा कि प्रदेश पंचायत राज अधिनियम 1994 की धारा 122 के तहत जिस व्यक्ति ने सरकारी भूमि पर अतिक्रमण किया हो, वह पंचायत चुनाव लडऩे के लिए अपात्र घोषित किया है। लेकिन जिला किन्नौर जनजातीय व अनुसूचित क्षेत्र होने के नाते यंहा वनअधिकार अधिनियम 2006 के तहत लोगों के वन भूमि पर कब्जे की मान्यता व सत्यापन की प्रक्रिया चल रही है। इस कानून के तहत जबतक सत्यापन प्रक्रिया पूर्ण नहीं होती तब तक वनभूमि पर कब्जे को अतिक्रमण न माना जाए। उन्होंने कहा है कि माननीय उच्च न्यायलय द्वारा 6 अप्रैल को सरकारी व वनभूमि पर से अतिक्रमण हटाने के आदेश दिया है।
उन्होंने सरकार से मांग की है कि वनअधिकार अधिनियम 2006 की धारा 4(5) के तहत पालन करते हुए बेदखली की कार्रवाई पर रोक लगाई जाए। इसी तरह वनअधिकार अधिनियम के तहत नौतोड़ मंजूर करने, बंदोबस्त से पहले के कब्जे, नौतोड के मिसलें जो मंजूर की है, लेकिन पटटा जारी नहीं किए है, 31 अगस्त 2002 से पहले के भूमि पर अतिक्रमण के नियमितिकरण के आवेदनों के सत्यापन वन अधिकारी अधिनियम के तहत की जाए।
वक्ताओं ने सरकार से कहा है कि जलविद्युत परियोजना निर्माण में जनजातीय व पर्यावरणीय कानूनों का खुलमखुल्ला उल्लंघन हुआ है। परियोजना निर्माण में भूमिगत भारी ब्लास्टिंग के कारण भूस्खलन, बगीचों व मकानों का भारी नुकसान हुा है जिस का ठीक से आकलंन नही हुआ है। इस पर जांच की जाए व भविष्य में जनजातीय कानूनों के प्रावधानों का पालन किए बगैर किसी भी परियोजना के निमार्ण की अनुमति न दी जाए।