कुल्लू : उपमंडल बंजार (Banjar) में तिर्थन घाटी (Tirthan Valley) के कई गांव आजादी के दशकों बाद भी कई मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। यहां की ग्राम पंचायत नोहण्डा के सैंकड़ों लोग आज भी सड़क और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। ग्राम पंचायत नोहण्डा कहने को तो विश्व धरोहर ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क का प्रवेश द्वार है, जहां पर जैविक विविधता का अनमोल खजाना छिपा पड़ा है। यहां प्रतिवर्ष सैंकड़ों की संख्या में अनुसंधानकर्ता, प्राकृतिक प्रेमी, पर्वतारोही, ट्रैकर और देशी विदेशी सैलानी घूमने फिरने का लुत्फ उठाने के लिए आते है। लेकिन इस क्षेत्र के सैंकड़ों बाशिंदे आजतक आजादी के सात दशक बाद भी विकास से कोसों दूर है।
यहां के लोग अभी तक सड़क, रास्तों, पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी कई मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। इस पंचायत के गांव दारन, शूंगचा, घाट, लाकचा, नाहीं, शालींगा, टलींगा, डींगचा, खरुंगचा, नडाहर और झनियार आदि गांव के सैंकड़ों लोग अभी तक सरकार व प्रशासन से उम्मीद लगाए बैठे है कि कब तक उनकी देहलीज तक भी सड़क पहुंच जाए। यहां के लोग अभी तक अपनी पीठ पर बोझ ढोने को मजबुर है। यही नहीं जब गांव में कोई व्यक्ति बीमार पड़ जाए तो मरीज को दुर्गम पहाड़ी पगडंडी रास्तों से लकड़ी की पालकी में उठा कर सड़क मार्ग तक पहुंचाना पड़ता है।
ऐसा ही एक वाक्या कल शाम को तीर्थन घाटी की दूर दराज ग्राम पंचायत नोहण्डा के गांव नाहीं में सामने आया। ग्राम पंचायत नोहण्डा के नाहीं गांव का रोशन लाल पुत्र भेद राम उम्र 29 वर्ष को कल शाम के समय अचानक दोनों टांगों में दर्द महसूस हुआ और धीरे-धीरे दर्द इतना बढ़ गया कि उसका चलना फिरना भी मुश्किल हो गया। गांव में कोई स्वास्थ्य सुविधा ना होने के कारण पूरी रात दर्द सहने के बाद आज सुबह ग्रामीणों ने बिमार रोशन लाल को करीब चार किलोमीटर पैदल पहाड़ी रास्ते से पालकी में उठाकर पेखड़ी सड़क मार्ग तक पहुंचाया जहाँ से उसे निजी वाहन द्वारा इलाज के लिए ले जाया गया।
नाहीं गांव के बाशिन्दों लोभु राम, दुर्गा दास, लाल सिंह, हिम चन्द, भेद राम, सीता राम, दिले राम, गोपाल चन्द, जॉनी, मेघ सिंह, इंद्र सिंह, तारा चन्द, रमाकांत शलाठ आदि का कहना है कि पहले भी इस तरह की अनेकों घटनाएं घट चुकी है हर वर्ष दर्जनों मरीजों को इलाज के लिए सड़क मार्ग तक पैदल पहुंचाना पड़ता है। इस तरह की स्वास्थ्य संबंधी इमरजेंसी होने पर सैंकड़ो ग्रामीणों को बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ता है। इस क्षेत्र से पढ़ाई करने वाले छात्र-छात्राओं को हाई स्कूल व इससे आगे की पढ़ाई करने के लिए प्रतिदिन करीब दो से पांच घंटे तक का सफर पैदल तय करना होता है।
स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर यहां कोई भी दवाखाना या सरकारी डिस्पेंसरी नहीं है। लोगों को सर्दी जुकाम की दवा लेने के लिए भी करीब 6 किलोमीटर का पैदल सफर करके पहाड़ी रास्तों से होकर गुशैनी पहुँचना पड़ता है। यहां पर सभी पहाड़ी रास्ते कच्चे बने हुए हैं और खतरनाक स्थानों पर कोई सुरक्षा इंतजाम भी नहीं है। ग्रामीणों का कहना है कि विश्व धरोहर की अधिसूचना जारी होने के पश्चात पार्क क्षेत्र से उनके हक छीन लिए गए लेकिन पार्क प्रबंधन ने प्रभावित क्षेत्र के लोगों के उत्थान एवं विकास के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किए हैं। यदि यहां के आम रास्तों को भी अच्छे से घोड़े खच्चर चलने लायक बनाया होता तो भी लोगों को कुछ राहत मिल सकती थी।
इस क्षेत्र के लोगों को आजतक राजनेताओं से सड़क के नाम पर महज कोरे आश्वासन ही मिलते रहे है। मगर उनके दर्द को कोई नहीं समझ पा रहा है। ना ही सरकार और ना ही प्रशासन। लोगों का कहना है कि सड़क के नाम से वर्ष 2008 से सभी दलों के नेता कोरे आश्वासन देकर चले जाते हैं लेकिन धरातल स्तर पर कुछ भी परिवर्तन नहीं हो रहा है। गत वर्ष गुशैनी में हुए जनमंच में भी इन्होंने अपनी समस्या से सरकार व प्रशासन को अवगत करवाया था लेकिन सड़क निर्माण के नाम पर अभी महज कागजी आश्वासन ही मिले हैं। अपने मानव अधिकारों और मौलिक अधिकारों का हनन होने पर ग्रामीणों में काफी रोष व्यापत है।
मीडिया के माध्यम से अपील की है कि उनकी पुकार को मुख्यमंत्री जय राम तक पहुंचाए। लोगों को उम्मीद ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि मुख्यमंत्री उनके दर्द को जरूर समझेंगे। लोक निर्माण विभाग उप मंडल बंजार के सहायक अभियन्ता रोशन लाल ठाकुर का कहना है कि नगलाड़ी नाला से नाहीं घाट लाकचा प्रस्तावित सड़क को राज्य सरकार से स्वीकृति मिल चुकी है, लेकिन नाबार्ड से इसकी मंजूरी मिलना बाकी है। मंजूरी मिलते ही सड़क निर्माण का कार्य शुरू कर दिया जाएगा।