नाहन: डाॅ. वाईएस परमार मेडिकल काॅलेज के वरिष्ठ चिकित्सकों के सरकारी आवास पर स्वास्थ्य विभाग ने कब्जा किया है। हैरानी इस बात पर जताई जा रही है कि मेडिकल काॅलेज प्रबंधन क्यों चुप्पी साधे हुए है, जबकि किसी को आवास का आबंटन भी नहीं हुआ है। दरअसल मेडिकल काॅलेज के वरिष्ठ चिकित्सकों को भी आवास की दरकार रहती है। प्रबंधन को निजी भवन भी आवास के मकसद से किराए पर लेने पड़ते हैं।
मांग यह की जा रही है कि इस बात की जांच की जानी चाहिए कि बगैर आबंटन के ही स्वास्थ्य विभाग के चिकित्सक ने कैसे आवास पर डेरा डाला हुआ है। जांच का पहलू यह भी है कि जिस आवास की चाबी मेडिकल काॅलेज प्रबंधन के पास होनी चाहिए, वो स्वास्थ्य विभाग के पास कैसे पहुंच गई। बता दें कि सरकारी आवास के आबंटन को लेकर सरकार का एक तय मापदंड है। इसमें बकायदा कमेटी गठित होती है। इसमें आबंटन पाने वाले व्यक्ति को कुछ औपचारिकताएं भी पूरी करनी होती हैं। इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि जो वरिष्ठ चिकित्सक लगातार लंबे समय से मेडिकल काॅलेज में सेवाएं दे रहे हैं, उन्हें इस सुविधा से वंचित होना पड़ रहा है।
अब सवाल उठता है कि आवास में रह रहे डाॅक्टर द्वारा तय नियमों के तहत न्यूनतम किराया अदा किया जा रहा है या नहीं। साथ ही अन्य शुल्क भी अदा किए गए हैं या नहीं, इसकी भी जांच होनी चाहिए।
उधर मेडिकल काॅलेज के प्रिंसीपल डाॅ. एनके महिन्द्रू ने काॅल रिसीव नहीं की, मगर आवास में रह रहे डाॅ. निर्दोष भारद्वाज ने अपना पक्ष रखा। उनका कहना था कि भवन की हालत सही नहीं है। इसका इस्तेमाल मेडिकल काॅलज द्वारा नहीं किया जा रहा था, लिहाजा सीएमओ द्वारा प्रिंसीपल को भी इस बात से अवगत करवाया गया था कि विभाग एक कमरे का इस्तेमाल करना चाहता है। डाॅ. भारद्वाज ने कहा कि करीब डेढ़ साल से मेडिकल काॅलेज द्वारा इस आवास का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा था।
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