हमीरपुर: अगर किसान लावारिस पशुओं से परेशान होकर खेती छोड़ रहा है तो अब निराश होने की जरूरत नहीं है। आयुर्वेद विभाग अब ऐसे किसानो की मदद को आगे आया है। जिन्होंने लावारिश पशुओं या बंदरों की समस्या को देखते हुए अपनी उपजाऊ भूमि पर खेती करना छोड़ दिया है और अपनी बहुमूल्य जमीन को बंजर छोड़ दिया है। ऐसे में किसान करें भी तो क्या करें। उन्हें फसलों से आमदनी तो क्या लागत भी वसूल नहीं होती। ऐसे में किसानों ने फसलों की बिजाई छोड़ जमीन को बंजर कर दिया है। इनकी कमाई के लिए आयुर्वेद विभाग सामने आया है।
किसानों को दो हेक्टेयर भूमि पर हर्बल पौधे उगाने के लिए विभाग 30 से 50 फीसदी अनुदान दे रहा है। किसान आपस में मिलकर दो हेक्टेयर भूमि का क्लस्टर बनाकर हर्बल पौधों की खेती कर सकते हैं। विभाग ने फिलहाल हर्बल पौधों की चार प्रजातियों की खेती को इस श्रेणी में रखा है। जल्द और पौधों की खेती इसमें जोड़ी जा सकती है। विभाग हर्बल पौधों सर्पगंधा, तुलसी, अश्वगंधा और श्वेत मूसली की बिजाई पर किसानों को 30 से 50 फीसदी अनुदान दे रहा है। जो किसान पशुओं से परेशान हैं वह खेती छोड़ जमीन को खाली कर चुके हैं। वह दो हेक्टेयर भूमि का क्लस्टर बनाकर हर्बल पौधों की खेती कर सकते हैं।
विभाग के हर्बल गार्डन नेरी के सहयोग से यह खेती होगी। इन पौधों का प्रयोग विभिन्न आयुर्वेदिक दवाइयों व नुस्खों में किया जाता है। ऐसे में किसान हर्बल पौधों की खेती कर आजीविका कमा सकते हैं। इन हर्बल पौधों को बंदर व अन्य लावारिस पशु भी नष्ट नहीं करते हैं। हर्बल गार्डन नेरी के वनस्पतिज्ञ डॉ. मदन का कहना है कि एक इलाके के कुछ किसान दो हेक्टेयर भूमि का क्लस्टर बनाकर इन पौधों की खेती कर सकते हैं। ऐसे में इन्हें अनुदान दिया जाएगा और हर्बल पौधों की खेती के बाद किसान आजीविका कमा सकते हैं।
शुगर रोगी गार्डन से लें इंसुलिन पौधा
मधुमेह रोगियों के लिए हर्बल गार्डन नेरी में इंसुलिन पौधा भी उपलब्ध है। इन पौधों की पत्तियां शुगर रोगियों में इंसुलिन की कमी को पूरा करने के काम आती हैं। राज्यस्तरीय हमीर उत्सव के दौरान विभाग ने यह पौधा प्रदर्शनी में लगाया था। इसके पत्तों के सेवन से शरीर में इंसुलिन की कमी पूरी होती है। विभाग के हर्बल गार्डन नेरी से रोगी इस पौधे को निर्धारित दाम में ग्रहण कर सकते हैं। ज्वालामुखी क्षेत्र में इस पौधे के पत्तों से शुगर की दवाई भी तैयार की जा रही है।