कुल्लू: सराज घाटी के अधिष्ठाता एवं सृष्टि के रचनाकार देव श्रीबड़ा छमाहूं गढ़ बुंगा स्थान पर पहुंचे और यहां भव्य देव आयोजन हुआ। गढ़ के पास पहुंचने पर देव श्रीबड़ा छमाहूं व रूपी के राजा महेश्वर सिंह का भव्य मिलन हुआ। इसके बाद बादशाह छमाहूं व उनके बजीर देवता करथा नाग जी का भव्य मिलन भी हुआ और रूपी राजा यहां विराजमान रहे। इस दौरान रूपी रियासत के राजा महेश्वर सिंह भी परंपरा के अनुसार यहां पहुंचे और देवताओं का भव्य स्वागत किया। जब भी देवता अपने गढ़ जाते हैं तो रूपी के राजा की हाजरी परंपरा अनुसार अवश्य मानी जाती है। इसके पीछे इतिहास यह है कि देव श्रीबड़ा छमाहूं बुंगा गढ़ के गढ़ पति हैं।
यहां राजा शांगरी की रियासत थी और गढ़ बुंगा में ही शांगरी राजा का किला व महल भी था। तत्कालीन समय में जब देवता अपने गढ़ को गए तो शांगरी राजा ने देवता का स्वागत नहीं किया और राजतंत्र की धौंस बताई। जिस कारण देव श्रीबड़ा छमाहूं निराश हुए और अपने गढ़ को बचाने के लिए राजा को यहां की रियासत छिनने का श्राप व आदेश जारी किए। इसके बाद देव शक्ति के चलते राजा रूपी मजबूत हुए और अपनी रियासत का विस्तार किया। राजा शांगरी को हार से बौखलाकर रियासत का हिस्सा छोड़ना पड़ा।
रूपी राजा के रियासत की यहां देव श्रीबड़ा छमाहूं ने विधिवत स्थापना की। यही नहीं जब रूपी राजा गढ़ बुंगा पहुंचे तो बाकायदा उनके चरणों की भी किले के प्रवेश द्वार पर स्थापना हुई। तब से लेकर आज तक जब भी देव श्रीबड़ा छमाहूं अपने गढ़ को जाते हैं तो राजा रूपी उनका स्वागत करने वहां पहुंचते हैं। इस बार 12 वर्षों के बाद फिर से देवता गढ़ बुंगा पहुंचे। वर्तमान रूपी राजा महेश्वर सिंह परंपरा के अनुसार अपनी रियासत में देवता का स्वागत करने पहुंचे।
सबसे पहले राजा के चरण स्थल पर देवता व राजा का भव्य मिलन हुआ। इस आयोजन में 18 देउल चार फाटी व चार कोठी के देव कार करिंदे छमाहूं के दरबार में अपनी हाजरी भरते हैं। इस आयोजन में बुंगा क्षेत्र के अलावा धाऊगी के पालसरा व गढ़िया की हाजरी आवश्यक होती है। इस बार भी गढ़ बुंगा में देव श्रीबड़ा छमाहूं का भव्य आयोजन हुआ और देवता करथा नाग भी परंपरा के अनुसार यहां पहुंचे। गौर रहे कि छमाहूं देवता सृष्टि के रचनाकार माने जाते हैं। छमाहूं ब्रह्मा, विष्णु,महेश,आदी,शक्ति व शेष का सामूहिक अवतार माने जाते हैं। सृष्टि में इस अवतार की उत्पत्ति सृष्टि के रचना के समय हुई थी।
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