शिमला : मीडिया रिपोर्टस में धर्मशाला की इंवेस्टर मीट के 87 हजार करोड़ के पूंजीनिवेश की बात सामने आ रही है। सूबे की भोली-भाली जनता इतना बड़ा आंकड़ा सुनकर अचंभित है। प्रदेश में औद्योगिक निवेश को लेकर जानकारी रखने वाले भी दबी जुबान से यह कह रहे हैं कि कहीं सरकार ने मुंगेरी लाल का हसीन सपना तो नहीं देख लिया है, क्योंकि इस स्तर के आंकड़े को धरातल पर उतारना नामुमकिन सा ही प्रतीत होता है। दरअसल मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के उस बयान से इस कहावत को इस कारण बल मिल गया है, क्योंकि सीएम ने स्वीकार कर लिया है कि 87 हजार करोड़ का पूंजीनिवेश संभव नहीं है।
अब सवाल उठता है कि इंवेस्टर मीट के आयोजन को लेकर इतना ताम-झाम क्यों किया जा रहा है। बेहतर होता कि राज्य सरकार केंद्र में अपनी घनिष्ठता के चलते कुछ समय के लिए वही औद्योगिक पैकेज का जुगाड़ कर लेती, जो दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दिया था। 2003 के बाद प्रदेश में औद्योगिक विस्तार को लेकर खलबली मच गई थी। पैकेज की वजह से पूंजी निवेश के लिए सरकार को नहीं भागना पड़ रहा था। उल्लेखनीय है कि पैकेज में निवेशकों के लिए इन्कम टैक्स, एक्साइज व ट्रांसपोर्ट सब्सिडी तीन अहम कंपोनेंट थे। इसके अलावा बिजली की उपलब्धता भी एक बड़ा आकषर्ण थी।
उल्लेखनीय है कि हाल ही में बद्दी की इकाई ने इस बात पर सवाल उठाए थे कि पूंजी निवेश के लिए बड़े-बड़े घरानों को मोहित करने के लिए रैड कारपेट बिछाया जा रहा है। जबकि वो पहले से ही प्रदेश की आर्थिकी में अपनी अहम भूमिका निभा रहे हैं, लेकिन सरकार उनकी अनदेखी कर रही है। दिलचस्प बात यह भी है कि लैंड बैंक बनाने के दावे किए जा रहे हैं, जबकि गौर करने वाली बात यह भी है कि आज से 10 साल पहले सरकार लैंड बैंक बना चुकी थी। अब तक यह आंकड़ा सामने नहीं आया है कि इंवेस्टर मीट पर कितने करोड़ खर्च हो रहे हैं।
कुल मिलाकर नजरें अब इस बात पर टिकी हैं कि वीवीआईपी कल्चर पर हो रही इंवेस्टर मीट से प्रदेश को क्या हासिल होगा। इतना भी तय है कि 5-9 नवंबर तक राज्य सरकार के अलावा अफसरशाही इस इंवेस्टर मीट के आयोजन में ही लगी रहेगी, लिहाजा इस अवधि में आम लोगों को अपनी मूलभूत सुविधाओं के लिए भी खामोश रहकर इंतजार करना पड़ेगा।
दिलचस्प बात यह भी है कि प्रदेश की पहचान उद्योगों से नहीं, बल्कि टूरिज्म से होती आई है। बेहतर होता सरकार पर्यटन के नजरिए से ही करोड़ों रुपए खर्च कर ग्लोबल इंवेस्टर मीट करती। उल्लेखनीय है कि सीएम का ताजा बयान आया है कि जरूरी नहीं है कि जितने एमओयू साइन हुए हैं, वो व्यवहारिक भी हो जाएं।