शिमला : बहुचर्चित छात्रवृति घोटाले में हिमाचल हाईकोर्ट ने सीबीआई और उच्चतर शिक्षा निदेशक को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने दो सप्ताह के भीतर इस केस में स्टेटस रिपोर्ट मांगी है। बिलासपुर निवासी श्याम लाल द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश एल.नारायण स्वामी और न्यायमूर्ति धर्म चंद चैधरी की खंडपीठ ने ये आदेश पारित किए।
याचिकाकर्ता ने याचिका में कहा है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय से संबंधित छात्रों की छात्रवृति में घपले को लेकर 10 नवंबर 2018 को एफआईआर दर्ज हुई थी। जांच रिपोर्ट में यह सामने आया था कि छात्रवृत्ति राशि का भारी दुरुपयोग किया गया था और राज्य के शैक्षणिक संस्थानों के अलावा, भारत के अन्य राज्यों में तैनात अन्य शैक्षणिक संस्थान भी इस घोटाले में शामिल थे। राज्य सरकार ने इस मामले को गहन जांच के लिए सीबीआई को सौंप दिया गया था।
याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि इस महत्वपूर्ण मामले की जांच के लिए सीबीआई द्वारा अपनाए गया दृष्टिकोण चिंताजनक है। उनका कहना है कि सभी समान संस्थानों की जांच नहीं हो रही है। याचिकाकर्ता के मुताबिक 2772 से अधिक शिक्षण संस्थानों में से केवल 22 शिक्षण संस्थानों में ही सीबीआई जांच के दायरे में ले रही है।
याचिकाकर्ता ने अदालत से गुहार लगाई है कि सी.बी.आई. को निर्देश दिया जाए कि वह राज्य परियोजना अधिकारी शशि भूषण द्वारा इस मामले में नामित सभी संस्थानों की जांच करे और आरोपी पाए जाने वाले संस्थानों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज करके जांच को निष्कर्ष तक ले जाए। मामले की अगली सुनवाई 14 नवंबर को होगी।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2013-14 से 2016-17 तक 924 निजी संस्थानों के विद्यार्थियों को 210.05 करोड़ और 18682 सरकारी संस्थानों के विद्यार्थियों को मात्र 56.35 करोड़ रुपये छात्रवृत्ति के दिए गए हैं। आरोप है कि इन संस्थानों ने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर छात्रवृत्ति की मोटी रकम डकारी थी। जनजातीय क्षेत्रों के विद्यार्थियों को कई साल तक छात्रवृत्ति नहीं मिल पाई। ऐसे ही एक छात्र की शिकायत पर इस फर्जीवाड़े से पर्दा उठा।
शिक्षा विभाग की जांच रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2013-14 से 2016-17 तक प्री और पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप के तौर पर विद्यार्थियों को 266.32 करोड़ रुपये दिए गए हैं। इनमे गड़बड़ी पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप में हुई है। इस स्कॉलरशिप में कुल 260 करोड़ 31 लाख 31,715 रुपये दिए गए हैं।