एमबीएम न्यूज़/शिमला
सोलन के कुमारहट्टी में चार मंजिला रेस्तरां के धराशायी होने से सेना के 13 जवानों और एक महिला को जान गंवानी पड़ी है। इस हादसे के लिए सीधे तौर पर मानवीय भूल को ही जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। मानसून की बरसात के दौरान प्रदेश में कई स्थानों पर कमजोर नींव वाले भवनों के भरभराकर गिरने के कारण जान-माल का भारी नुकसान होता है।
राजधानी शिमला की बात करें, तो यहां 300 के करीब भवन ऐसे हैं, जो जर्जर हालत में पहुंच चुके हैं और बड़े हादसे का न्यौता दे रहे हैं। इनमें 40 भवन को नगर निगम असुरक्षित घोषित कर चुका है। लेकिन मालिकों और किराएदारों के विवाद के कारण ये भवन आज तक खाली नहीं किए गए हैं। कुछ जर्जर भवनों में दुकानदार अपना व्यवसाय संचालित कर रहे हैं। दो दिन पहले ही शिमला के बैनमोर वार्ड में एक पुराना भवन साथ लगते मकान पर ढह गया था। इस घटना में दंपति बाल-बाल बच गई।
नगर निगम एवं जिला प्रशासन बरसात में पेश आने वाले हादसों से कोई सबक लेते नजर नहीं आ रहे। यही वजह है कि नगर निगम पुराने जर्जन भवन के मालिकों को नोटिस थमाने तक ही सीमित है। कमाल की बात यह है कि ज्यादातर पुराने जर्जर भवन राजधानी के पॉश व भीड़-भाड़ वाले इलाकों लोअर बाजार, रामबाजार, लक्कड़ बाजार, सब्जी मंडी और कृष्णानगर के इलाकों में हैं। हर साल वर्षा ऋतु के दौरान इन इलाकों में भूस्खलन का सबसे ज्यादा खतरा रहता है। जर्जर हो चुके कई भवन कभी भी जमींदोज होकर बड़ी तबाही मचा सकते हैं।
भारी वर्षा होने पर कृष्णानगर के कई घरों के भीतर पानी घुसना आम बात है। कच्ची घाटी, संजौली और ढली में अधिकतर भवनों का निर्माण ढलानों पर हुआ है। कुछ भवन तो 90 डिग्री स्लोप पर भी बना दिए गए हैं। राष्ट्रीय महालेखाकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक राजधानी में 200 से अधिक भवन भूकंप के नजरिए से असुरक्षित पाए गए हैं।
उधर, नगर निगम प्रशासन का कहना है कि असुरक्षित भवनों को खाली करने के लिए समय-समय पर नोटिस जारी किए जाते हैं, मगर लोग भवनों को खाली करने को तैयार नहीं हैं। नगर निगम शिमला के आर्किटैक्ट प्लानर राजीव शर्मा ने बताया कि शहर में 40 भवन असुरक्षित हैं तथा नोटिस देने के बावजूद लोग इनमें रह रहे हैं। इन्हें खाली करवाने के लिए फिर से नोटिस जारी किए जाएंगे।