शैलेंद्र कालरा/नाहन
हमेशा ही आप राजनीतिज्ञों, फिल्मी सितारों के अलावा बड़े-बडे़ कारोबारियों व नामी हस्तियों की ही खबरें पढ़ते रहे होंगे। इस बार एमबीएम न्यूज नेटवर्क ने एक ऐसे शख्स की तलाश की है, जिसकी मौजूदगी के बगैर दुनिया से रुखसत होने वालों को श्मशानघाट में विदाई नहीं मिलती।
आप जानकर हैरान हो जाएंगे कि ऐतिहासिक शहर में 47 वर्षीय मोहन लाल ही हैं, जो 8 साल की उम्र से श्मशानघाट में अंतिम संस्कार की रस्म को पूरा करते आ रहे हैं।यही नहीं, आसपास के गांवों में भी मोहन लाल को ही जाना पड़ता है। एक सवाल के जवाब में मोहन लाल बताते हैं कि ठीक से तो याद नहीं है, लेकिन 39 सालों में लगभग चार हजार अंतिम संस्कार करवा चुके हैं।
1980 में जब 8 साल के थे तो अपने पिता स्व. ज्योति राम के साथ श्मशानघाट पर जाना शुरू कर दिया था। 9 साल की उम्र में पिता अकेले ही संस्कार क्रिया के लिए भेजने लगे थे। उनका यह भी कहना था कि वो अपने छोटे बेटे को इस बात के लिए प्रेरित कर रहे हैं कि इस पेशे को आगे बढ़ाए। बड़ा बेटा कालाअंब में नौकरी कर रहा है तो दो बेटियां 11वीं व दसवीं की परीक्षा दे चुकी हैं। सबसे छोटे बेटे ने नौंवी की परीक्षा दी है।हालांकि मोहन लाल का परिवार दशकों पहले मोहाली के समीप कुमड़ा गांव से यहां आकर बसा था, लेकिन यहां के हरेक परिवार से इनका नाता जुड़ गया है। शायद ही शहर में कोई ऐसा परिवार हो, जहां पिछले 39 सालों में कोई मौत न हुई हो। ऐसे में मोहन लाल का हरेक परिवार से जुड़ाव है।
47 साल के मोहन लाल का कहना है कि वो अपने तजुर्बे से इस बात को कह सकते हैं कि श्मशान में पहुंचने के बाद अमीर व गरीब में कोई फर्क नहीं होता। विडंबना इस बात की है कि सामाजिक संस्थाएं हरेक क्षेत्र से उल्लेखनीय कार्य करने वाले को सम्मानित करती है, लेकिन मोहन लाल को किसी भी मंच पर सम्मान नहीं मिला। मोहन लाल के व्यक्तित्व में यह बात भी नजर आई कि वो अपने फर्ज को बगैर किसी लालच के निभाते आ रहे हैं। उनका कहना है कि कई मर्तबा धनाढ़य व्यक्ति का अंतिम संस्कार करवाया तो कई बार ऐसे गरीब परिवार भी मिले, जिनके पास अंतिम संस्कार से जुड़ी सामग्री को खरीदने के लिए पैसे भी नहीं होते।
मोहन लाल का यह भी कहना है कि वो ताउम्र यही समझते आए हैं कि गृहस्थ जीवन से बड़ी यही सेवा है, जो वो 8 साल की उम्र से कर रहे हैं।