रेणु कश्यप/नाहन
मामला, पांवटा घाटी की कोटड़ी व्यास पंचायत से जुड़ा हुआ है। यहां अक्सर पूर्व सैनिक निरंजन सिंह के घर के समीप नाग-नागिन का जोड़ा नजर आता था। इससे दहशत भी होती थी, क्योंकि बच्चे भी आसपास खेलते रहते थे। हालांकि नाग देवता ने करीब चार साल से किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया था, लेकिन फिर भी लोगों में खौफ लाजमी था। चूंकि इसे पकड़ने वाले बंगाली मूल के सपेरे लोग मोटी रकम मांगते थे। साथ ही पकड़ने के बाद नाग-नागिन को अपनी कैद में रखने की शर्त भी रखते थे। लिहाजा कोई इन्हें पकड़ने के लिए बंगाली सपेरों को नहीं लाता था।
कोटड़ी व्यास के रहने वाले पूर्व सैनिक निरंजन सिंह ने माजरा से बंगालियों को नाग-नागिन को पकड़ने के लिए बुलाया तो जरूर, लेकिन यह शर्त रखी कि पकड़ने के बाद उन्हें आजाद करना होगा। चार दिन पहले नाग-नागिन को पकड़कर कैद कर लिया गया। अब फौजी ने शर्त रखी थी कि उन्हें आजाद भी करना है, लिहाजा शुक्रवार को पड़दूनी के समीप घने जंगलों में नाग-नागिन को सुरक्षित स्थान पर कैदमुक्त कर दिया गया।
क्यों चार दिन…
आपके जहन में यह सवाल उठ रहा होगा कि सपेरों ने आजादी के लिए चार दिन ही क्यों मुकरर्र किए थे। एमबीएम न्यूज नेटवर्क ने इस सवाल का जवाब भी तलाशा। पता चला कि बंगाली मूल के सपेरे अगर किसी जोड़े या फिर सांप को पकड़ते हैं तो अपनी प्रथाओं के मुताबिक इसे चार दिन से पहले नहीं छोड़ सकते। इसमें उनकी धार्मिक प्रथाएं बंदिश बनती हैं। कैद के दौरान नाग देवता की पूजा व अन्य अनुष्ठान भी शामिल रहते हैं।
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इस वजह से डर…
अक्सर ऐसी घटनाएं भी सामने आती हैं, जब लोग लाठियों से पीटकर सांप को मार देते हैं, लेकिन नाग-नागिन के जो़ड़े को लेकर क्षेत्र में कुछ दंतकथाएं प्रचलित हैं। इसके मुताबिक अगर जोड़े में से किसी एक को मार दिया जाता है तो दूसरा साथी हर हाल में बदला लेता है। यही कारण था कि स्थानीय लोग जोड़े के दिखने से कई बार डर तो जाते थे, लेकिन उन्हें मारने या जख्मी करने के बारे में नहीं सोचते थे। पूर्व फौजी ने न केवल ग्रामीणों को दहशत से मुक्त करवाया, बल्कि जोड़े को सुरक्षित स्थान पर छुड़वाकर वन्यप्रेमी होने का प्रमाण दिया है।