एमबीएम न्यूज/कांगड़ा
श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण करने वाली श्रद्धा की प्रतीक, विश्व-विख्यात बज्रेश्वरी देवी मंदिर कांगड़ा के मंदिर मे हर वर्ष की भांति इस बार भी सात दिवसीय घृत मंडल पर्व का आयोजन सोमवार को शुरू हो गया। कांगड़ा का बज्रेश्वरी देवी मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक है। यहां सती का दाहिना वक्ष गिरा था। कई शताब्दियों से चली आ रही ऐतिहासिक परंपरा घृत पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। शक्तिपीठ माता बज्रेश्वरी देवी मंदिर के सबसे बड़े पर्व को लेकर माता का दरबार श्रद्धालुओं की भीड़ से जहां भर गया है, वहीं माता की पिंडी पर होने वाले मक्खन के श्रृंगार को देखने के लिए देश के कोने-कोने से श्रद्धालु पहुंच गए हैं। मकर सक्रांति का दिन होने के कारण भी सोमवार को मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रही।
ऐतिहासिक धार्मिक उत्सव को लेकर श्री बज्रेश्वरी माता का मंदिर दुल्हन की तरह सजा है। वहीं पूरा नगर भी रंग-बिरंगी लाइटों से चकाचौंध है। कई शताब्दियों से चले आ रहे इस पर्व में श्रद्धालु अपनी भागीदारी सुनिश्चित करना चाहते हैं। ऐतिहासिक धार्मिक घृत पर्व मान्यता है कि मकर सक्रांति से लेकर एक सप्ताह तक इन मंदिरों में मौजूद पिंडी के ऊपर कई क्विंटल मक्खन का लेप चढ़ाया जाता है। माघ मास की मकर सक्रांति के दिन से आरंभ होने वाले इस विशेष आयोजन पर मां बज्रेश्वरी मंदिर व बर्फ से ढकी धौलाधार की चोटियों की मनोहारी छटा माहौल को दार्शनिक बना देती है।
इस विशेष घृत मंडल के आयोजन के उद्देश्य के संबंध में कहा जाता है कि जालंधर दैत्य को मारते समय माता के शरीर पर अनेक चोटें आई थीं। देवताओं ने माता के सिर पर घृत का लेप किया था। इस मक्खन के ऊपर नाना प्रकार के मेवे और फल मेवों की मालाएं सुसज्जित की जाती है। घृत सात दिनों तक माता की पिंडी पर चढ़ा रहता है। उसके पश्चात इसे प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। लोगों में धारणा है कि इस मक्खन को धावों, फोड़े आदि पर लगाने से उनका उपचार हो जाता है। देश-विदेश से हजारों की संख्या में श्रद्धालु इस अदभुत आयोजन का दर्शन करने कांगड़ा पहुंचते हैं।
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