शिमला (एमबीएम न्यूज ब्यूरो) : विश्वविख्यात वैज्ञानिक आर्किमिडीज व न्यूटन के सिद्धांत व समीकरण गलत हैं। आइनंस्टाइन ने E=mc2 समीकरण विश्व को 330 साल पहले दिया था। उस वक्त गणितीय और प्रयोगात्मक आधार काफी संकुचित थे। लेकिन इंटरनेट के युग में वैज्ञानिक अजय शर्मा आर्किमिडीज से इत्तफाक नहीं रखते हैं। 1982 में अजय शर्मा 19 साल के थे, साथ ही वह बीएससी द्वितीय वर्ष में पढ़ रहे थे।
शर्मा ने उसी वक्त बता दिया था कि आर्किमिडीज के सिद्धांत अधूरे हैं। 1985-96 में डीएवी कॉलेज चंडीगढ़ में फिजिक्स लैक्चरर के पद से अपना कैरियर शुरू करने वाले अजय अब प्रारंभिक शिक्षा विभाग में सहायक निदेशक के पद पर तैनात हैं। गौरतलब है कि विश्व में आज भी 220 देश आर्किमिडीज के सिद्धांत को ही पढ़ते हैं। अपने विचारों के व्याख्यान के लिए अजय शर्मा को जुलाई-2014 में द यूलर सोसायटी कांफ्रेस में अमेरिका के टैक्सस बुलाया गया था।
न्यूटन के गति के तीसरे नियम की खामी
शर्मा का दावा है कि यह नियम प्रकृति, संरचना, कठोरता व लचीलापन आदि की अनदेखी करता है। तीसरे नियम के अनुसार हर क्रिया के समान व विपरीत प्रतिक्रिया होती है। इस तरह अगर लोहे, कपड़े, लकड़ी, स्पंज व रबड़ की वस्तुओं की क्रिया समान हो तो प्रतिक्रिया भी समान होगी। उदाहरण के तौर पर अगर दो रबड़ की गेंदों को दीवार की तरफ फेंका जाए तो दोनों समान गति से वापिस आती हैं।
इस तरह क्रिया व प्रतिक्रिया दोनों बराबर होती हैं। अगर एक कपड़े व एक रबड़ की गेंद को दीवार पर फेंका जाए तो गेंद तेजी से वापिस आती है और कपड़े की गेंद धीरे-धीरे वापिस आती है। इसी आधार पर अजय शर्मा मानते हैं कि इस स्थिति में गणित के समीकरणों में एक आंतरिक घटक आ जाता है।
आर्किमिडीज का सिद्धांत क्यों गलत?
इस सिद्धांत के मुताबिक जब वस्तु को द्रव में डुबोया जाता है तो उसके भार में कमी आ जाती है। वस्तु के भार में यह कमी उसके द्वारा हटाए गए पानी के भार के बराबर होती है। जब 250 ई0पू0 यह सिद्धांत दिया गया था, उस समय न आधुनिक गणित के समीकरण थे और न ही प्रयोगात्मक आंकड़े।
सिद्धांत की अग्रिपरीक्षा उस पर आधारित गणित के समीकरणों की भविष्यवाणियों से होती है। सिद्धांत के अनुसार जब कोई वस्तु पानी पर गिरती है तो तैरती है और वस्तु का आकार पूरी तरह बेमानी होता है। आर्किमिडीज के मुताबिक केवल वस्तु घनत्व के ही मायने हैं।
आइंनस्टाइन के समीकरण में खामियां?
इसी समीकरण पर एटम बम बनाया जाता है। यह ऐसी समीकरण है, जिसकी वजह से आइंनस्टाइन ने इसे जर्मन शोध पत्रिका में 1905 में प्रकाशित करवाया था। इस बात पर भी आश्चर्य हुआ था कि यह शोधपत्र बगैर वैज्ञानिक राय व समीक्षा के कैसे प्रकाशित हुआ।
शर्मा का दावा है कि 110 साल बाद उन्होंने गणितीय आलोचनात्मक विवेचना की है। इसी में ही कई खामियां सामने आई। इस समीकरण को शर्मा ने विस्तारक dE=AAc2 dm के रूप में किया है। इसके मुताबिक निकलने वाली ऊर्जा बराबर, कम व ज्यादा हो सकती है।