एमबीएम न्यूज़/कुल्लू
भगवान रघुनाथ की रथ यात्रा के थमते ही कुल्लू का दशहरा उत्सव संपन्न हो गया है। रथयात्रा के बाद जैसे ही भगवान रघुनाथ के रघुनाथपुर (सुल्तानपुर) पहुंचते ही संपन्न हो गया। भगवान रघुनाथ जी के ढालपुर मैदान के बीच सात दिनों तक के लिए मनाए गए अस्थाई शिविर में रघुनाथ जी की रथयात्रा पुन: आरंभ हुई और देवताओं के भारी समूह और अपार श्रद्धालुओं की भीड़ के बीच रघुनाथ जी के रथ को मैदान के अंतिम छोर तक ले जाया गया।
दशहरा उत्सव के इस अंतिम दिन को लंकादहन के नाम से जाना जाता है। इस मौके पर कुल्लू घाटी के गांववासी अपने पारंपरिक वेशभूषा में इस अंतिम दिन की रथयात्रा का नजारा देखने पहुंचे थे। रघुनाथ जी को पारंपरिक रूप से पालकी में सवार कर उनके स्थायी मंदिर सुल्तानपुर में ले जाया गया। कुल्लू दशहरा का अपना अलग महत्व है। जहां सारे भारत में दशहरा खत्म होता है वहीं कुल्लू का दशहरा आरंभ होता है।
इसकी विशेषता यह भी है कि इसमें रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ के पुतले नहीं जलाए जाते बल्कि पिछले वर्ष से हाईकोर्ट द्वारा बलि पर लगाए गए प्रतिबंध के चलते नारियल की बलि के बाद घास की झाडिय़ां इक्ट्ठी करके जलाई जाती है। लंका दहन की समाप्ति के साथ ही दशहरे में आए
देवी-देवता भी अपने घरों को रवाना हो गए है। धूर विवाद के कारण जहां इस बर्ष बंजार घाटी के देवता श्रृंगा ऋषि और बालू नाग को पहले दिन की भांति अंतिम दिन भी रथयात्रा में शामिल नहीं होने दिया। रथयात्रा के अंतिम दिन भी पीज के जम्दग्नि ऋषि धूर में शामिल हुए।
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