वी कुमार / मंडी
1999 को हुए कारगिल युद्ध के दौरान 13 जून 1999 को युद्ध का एक बड़ा टर्निंग प्वाईंट था। जब भारत के वीर जवानों ने तोलोलिंग चोटी पर कब्जा जमा लिया था। इस युद्ध के हीरो रहे ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर ने इस फतह की 19वीं वर्षगांठ के मौके पर बताया कि कारगिल युद्ध 1999 की वही लड़ाई थी। जिसमें पाकिस्तानी सेना ने अपना धोखेबाज चरित्र दिखाते हुए द्रास कारगिल की पहाडियों पर भारत के विरुद्ध साजिश व विश्वासघात से कब्जा करने की कोशिश की थी।
भारतीय सेना ने अपनी मातृभूमि में घुस आए घुसपैठियों को बाहर खदेडने को एक बड़ा अभियान चलाया। जिसमें भारतीय सेना के 527 रणबांकुरों ने अपने बलिदान से मातृभूमि को दुश्मनों के नापाक कदमों से मुक्त किया। 1363 जांबाजों ने घायल होकर भी न केवल लड़ाई लड़ी, बल्कि उसे अंजाम तक पहुंचाने में अपना योगदान दिया।
कारगिल की यह लड़ाई दुनिया के इतिहास में सबसे उंचे क्षेत्र में लड़ी गई लड़ाई थी। करीब दो महीने तक चली इस लड़ाई में अंततः भारतीय सेना ने अपने गौरवशाली अतीत की याद दिलाते हुए पाकिस्तानी सेना को मार भगाया।
26 जुलाई 1999 को आखिर चोटी पर जीत के साथ रक्तरंजित किन्तु गौरवशाली वीरता का इतिहास लिखा गया। 26 जुलाई 1999 का यही दिन “कारगिल विजय दिवस” के रुप में मनाकर हम देश को अपने प्राणों की आहुति सहर्ष देने वाले सैनिकों को याद कर उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते है।
जब हम कारगिल विजय दिवस को याद कर रहे हैं। तो महत्वपूर्ण हो जाता है कि कारगिल की लड़ाई की उन महत्वपूर्ण कडियों को पिरोया जाए जिन्होंने एक के बाद एक मोर्चा फतह कर कारगिल विजय की गाथा लिखी। बात 1999 की है जब पाकिस्तानी सेना घुसपैठिया बन भारतीय क्षेत्र में घुसी व कारगिल की ऊंची-ऊंची चोटियों पर कब्जा जमा लिया। यह अपने आप में पूरे विश्व में अनूठा युद्ध था। जब एक और घुसपैठी, सैनिक पहाडियों की चोटी पर कब्जा जमाए बैठे थे।
वहीं दूसरी ओर भारतीय सेना नीचे सपाट मैदानों में थी। या यूं कहें भारतीय सेना पाकिस्तानी घुसपैठियों के लिए बहुत ही आसान टारगेट थी। लेकिन यहीं भारतीय सेना ने अपने शौर्य गाथा लिखी। भारतीय रणबांकुरों ने अपने प्राणों की परवाह न करते हुए उन पहाड़ों पर चढ़ाई कीए पहाड़ रणबांकुरों के रक्त से रक्तरंजित होते रहे, परंतु अभियान नहीं रुका। रुका तो सिर्फ चोटियों पर कब्जा करने के बाद।
ऐसी ही एक महत्वपूर्ण चोटी थी तोलोलिंग। यह वही पहली चोटी थी जिस पर भारतीय सेना ने सबसे पहले कब्जा जमाया। यहीं से कारगिल की लड़ाई में एक नया मोड़ आया। तोलोलिंग युद्ध का अभियान 20 मई 1999 को शुरू हुआ। इसका जिम्मा 18 ग्रेनेडियर्ज को दिया गया। ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर अपनी स्मृतियों के पन्नों को पलटते आज भी उस अभियान को नहीं भूल पाते। वे भूल नहीं पाते कि किस प्रकार इस लड़ाई में उनके नेतृत्व में 18 ग्रेनेडियर्ज के बहादुरों ने कैसे अपना लोहा मनवाया था।
कैसे 18 ग्रेनेडियर के तत्कालीन कमांडिंग ऑफिसर ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर की कमान के सर्वाधिक सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी। तोलोलिंग पर कब्जा करने की कोशिश में 18 ग्रेनेडियर्ज के 25 जवान शहीद हो चुके थे। यह एक अपने आप में बहुत बड़ी क्षति थी। कारण स्पष्ट था ऊपर चोटी पर बैठा दुश्मन सेना की हर हरकत पर नजर रखे हुए था। दुश्मन बड़ी आसानी से इस अभियान को नुकसान पहुंचाता रहा।
सबसे पहले मेजर राजेश अधिकारी शहीद हुए। एक बड़े नुकसान के बाद ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर ने स्वयं मोर्चा संभालने की ठानी और अभियान को सफल बनाया। 13 जून 1999 को 18 ग्रेनेडियर्ज व 2 राजपूताना राईफल्ज ने तोलोलिंग पर कब्जा किया। परंतु तोलोलिंग की सफलता बहुत महंगी साबित हुई। इस संघर्ष में लेफ्टिनेंट कर्नल विश्वनाथन बुरी तरह घायल हुए।अंततः ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर की गोद में प्राण त्याग कर वीरगति को प्राप्त हुए।
पहली चोटी तोलोलिंग व सबसे ऊंची चोटी टाईगर हिल पर विजय पताका फहराने का सौभाग्य ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर व उनकी यूनिट 18 ग्रेनेडियर्ज को प्राप्त हुआ था। भारत के महामहिम राष्ट्रपति ने इस विजय व ऐतिहासिक अभियान के लिए 18 ग्रेनेडियर्ज को 52 वीरता सम्मानों से नवाजा। जो कि भारत के सैन्य इतिहास में एक रिकॉर्ड है।
हवलदार योगेन्द्र यादव को देश के सर्वोच्च वीरता सम्मान “परमवीर चक्र”से सम्मानित किया गया। इसके अलावा 2 महावीर चक्र, 6 वीर चक्र,1 शौर्य चक्र, 19 सेना पदक व दूसरे वीरता पुरस्कारों से नवाजा गया। साथ ही साथ कारगिल थियेटर ऑनर व टाईगर हिल व तोलोलिंग बैटल ऑनर 18 ग्रेनेडियर्ज को दिए गए। ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर को युद्ध सेवा मेडल से नवाजा गया।