एमबीएम न्यूज/नाहन
24 घंटे के भीतर 108 एंबूलेंस कर्मियों ने एक बार फिर डयूटी के प्रति कर्त्तव्य परायणता की गजब मिसाल पेश की है। जहां वीरवार को विक्रमबाग इलाके के जंगल में गुज्जरों ने गर्भवती को मृत मान लिया था, वहां 108 कर्मियों की सूझबूझ से महिला सहित नवजात की जान बचा ली गई।
वहीं अब शुक्रवार को हरिपुरधार की 108 एंबूलेंस ने सूझबूझ के अलावा डयूटी के प्रति अपनी जिम्मेदारी का बखूबी वहन किया है। वीरवार रात करीब एक बजे लोहानधार के ठुंडाडी गांव में 23 साल की रीता को प्रसव पीड़ा शुरू हो गई। लगभग चार घंटे तक पीड़ा सहन करती रही, लेकिन जब सुबह 5:37 बजे पीड़ा असहनीय हो गई तो 108 को सूचित किया गया। पूरी शिद्दत से 108 कर्मी 34 मिनट के भीतर लोहानधार पहुंच गए। जहां केवल महिला का पति विनोद कुमार कर्मियों की इंतजार कर रहा था।
पति ने कर्मचारियों को बताया कि रीता एंबूलेंस तक पहुंचने की स्थिति में नहीं है। ईएमटी बलबीर सिंह व पायलट संजीव कुमार पैदल चलकर महिला तक पहुंचने को तैयार हो गए। पहले खड़ी चढ़ाई में महिला को कंधे पर उठाकर एंबूलेंस तक पहुंचाने की कोशिश की गई, लेकिन 100 मीटर की चढ़ाई के बाद महिला की हालत और अधिक बिगड़ गई। लिहाजा ईएमटी बलबीर ने स्थिति को भांपते हुए जंगल में ही प्रसूति करवाने का फैसला ले लिया। ईएमटी नेे जंगल में ही महिला की सफल प्रसूति करवा दी।
सुबह 6:44 बजे रीता ने स्वस्थ बेटी को जन्म दिया। जच्चा-बच्चा के सुरक्षित होने पर जहां परिवार के चेहरे पर लंबी मुस्कान थी, वहीं 108 कर्मियों ने लंबा सुकून महसूस किया। ईएमटी ने बेहद समझदारी से डॉ. प्रेम को भी संपर्क में लेकर जच्चा-बच्चा को प्राथमिक उपचार दिया। कमाल देखिए, जंगल में जहां पहले महिला असहनीय दर्द से कराह रही थी, वहीं चंद घंटों में ही अपनी स्वस्थ बेटी को लेकर घर लौट गई। पति विनोद ने जंगल में पैदल चलकर प्रसूति करवाने पर 108 कर्मियों का आभार प्रकट किया।
उन्होंने कहा कि गांव में अब तक सडक़ नहीं बन पाई है। धीमी गति से कार्य चल रहा है। उन्होंने कहा कि अगर पैदल चलकर 108 कर्मी मौके पर नहीं पहुंचते तो उनकी पत्नी व बच्चे को जीवन का खतरा हो सकता था। उल्लेखनीय है कि महिला रीता की यह दूसरी डिलीवरी थी। कुल मिलाकर जहां 108 एंबूलेंस कर्मियों की सूझबूझ की दाद देनी होगी, वहीं पहाड़ी महिलाओं की सहनशीलता भी कम नहीं आंकी जा सकती।