एमबीएम न्यूज / शिमला
एक सामान्य बच्चे को तो हर शिक्षक पढ़ा लेता है, लेकिन प्रदेशाध्यक्ष को जो ठीक से बोल व सुन पाने में असमर्थ होते हैं, को पढ़ाना टेढ़ी खीर रहता है। इन बच्चों के मसीहा बनते है स्पेशल एजुकेटर। मगर राज्य सरकार इन विशेष शिक्षकों के मानदेय को लेकर चिंतित नहीं है। आठ साल पहले मात्र 8910 रुपए के वेतन पर तैनाती की गई थी।
घरों से 200 किलोमीटर दूर स्थित शिक्षा खंडों में 60 से 120 दिव्यांग बच्चों को संभालने का भार दो स्पेशल एजुकेटर्स पर रहता है। आप यह जानकर हैरान हो जाएंगे कि इन शिक्षकों को न तो ग्रेड पे मिलती है और न ही वेतन में बढ़ोतरी। विशेष शिक्षक संघ के प्रदेशाध्यक्ष चरणजीत सिंह भट्टी का कहना है कि जब शिक्षकों की तैनाती की गई थी तो उस समय सरकारी स्कूलों में दिव्यांग बच्चों की संख्या 2500 थी, लेकिन आज यह संख्या 13 हजार हो चुकी है।
उनका कहना है कि विशेष शिक्षकों की बदौलत ही घर-घर सर्वे के बाद विशेष बच्चों की संख्या सरकारी स्कूलों में बढ़ गई है। उनका कहना है कि विशेष शिक्षकों द्वारा उन बच्चों को पढ़ाया जाता है, जिन्हें मोटी पगार लेने वाले शिक्षक छोड़ देते हैं। यहां तक की स्कूलों से 20 से 30 किलोमीटर दूर विशेष बच्चों के घर जाकर भी उन्हें प्रशिक्षण देना पड़ता है।
प्रदेशाध्यक्ष ने कहा कि विशेष डिग्री-डिप्लोमा भी दो साल का होता है और जेबीटी कोर्स भी दो ही साल का। जेबीटी के लिए सरकार आर एंड पी रूल बनाती है, लेकिन विशेष शिक्षकों के मानदेय में बढ़ोतरी करने के बारे में सोचती तक नहीं है। उन्होंने मांग की है कि विशेष शिक्षकों को सर्वशिक्षा अभियान से हटाकर शिक्षा विभाग में विशेष नीति के तहत रखा जाए।