चौपाल (एमबीएम न्यूज): अक्सर आप सुनते होंगे, आटे के घराट विलुप्त हो रहे हैं। लेकिन आप यह जानकर हैरान हो जाएंगे कि 1922 में पानी से चलने वाली आरा मशीन स्थापित हुई थी, जो आज 96 साल बाद भी बखूबी कार्य कर रही है। अंग्रेजों के जमान सेे आज तक बिना बिजली के उपयोग के लकडिय़ों के चिरान कर रही है।
यह अनोखी आरा मशीन उपमंडल के सरैन गांव में स्थापित है, जहां मशीन परिवार की आमदनी का साधन बनी हुई है। दुर्लभ आरा मशीन के बारे में आसपास के लोग तो बखूबी वाकिफ हैं, लेकिन प्रदेश को शायद नहीं पता होगा कि एक अनोखी आरा मशीन भी है। सौ साल के बाद मशीन खुद-ब-खुद एंटीक की श्रेणी में आ जाएगी। सबसे बड़ी बात यह है कि मशीन लगातार चल रही है। मशीन का अविष्कार उस दौर में किया गया था, जब क्षेत्र में बिजली व्यवस्था नहीं थी। ऐसे में लकडिय़ों का चिरान संभव नहीं था।
आप यह जानकर हैरान हो जाएंगे कि पानी से चलने वाली इस आरा मशीन के सहारे ही बड़े-बड़े दरख्तों को तराश कर घर बनाए जाते थे। परिवार के लिए दो वक्त की रोटी जुटाने का जरिया बनी है। स्थानीय काष्ठकार के मुताबिक इस मशीन में एक रुपए की बिजली का खर्च नहीं है। महंगाई के इस दौर में 10 पैसे प्रति इंच चिरान अब 5 रुपए प्रति फीट हो चुका है। परिवार ने सरकार से गुजारिश की है कि इस प्रकार की पानी से चलने वाली पुरानी धरोहरों को संरक्षित करने के लिए ठोस कदम उठाए जाने चाहिए।
कमाल देखिए, 96 साल से पानी से चलने वाले उपकरण से न तो कोई बिजली का खर्चा है, न पर्यावरण पर इसका कोई दुष्प्रभाव है। सरकार को इन पुराने संसाधनों की तरफ ध्यान देना चाहिए और इनके संरक्षण व आधुनिकता की दिशा में आगे बढ़ाने में मदद करनी चाहिए। ताकि इस व्यवसाय पर निर्भर परिवार भी अच्छे तरीके से दो वक्त की रोटी हासिल कर सके।