मंडी (एमबीएम न्यूज़ ): हिमाचल प्रदेश में मनाए जाने वाले जिला से अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक के मेलों में हिमाचली लोकगायक अपनी उपेक्षा से आहत हो रहे है कि उन्हें उनकी प्रतिभा के आधार पर मंच नहीं दिया जाता है। मीडिया को जानकारी देते हुए सिराज विधानसभा क्षेत्र के लोकगायक लीलाधर चौहान ने बताया कि वे पिछले दस सालों से हिमाचली संस्कृति पर काम कर रहे है और उसके साथ हिमाचली लोकगायकों के साथ हो रहे भेदभाव पर प्रशासन व मेला कमेटी के साथ जंग लड रहे है कि धीरे-धीरे वे कामयाब हो रहे है।
उन्होने बताया कि कुछ वर्ष पहले सिराज के जिला स्तरीय मेला कुथाह, जिला स्तरीय मेला बालीचैकी, मेला नलबाड लंबाथाच, सिराज दीप उत्सव थुनाग से उन्होने लोकगायकों के साथ हो रहे भेदभाव बारे आवाज उठाई जहां मेले की सांस्कृतिक संध्याओं को एक ठेकेदार को बेचा जाता था। सिराज के कलाकारों को अपने कार्यक्रम हेतु ठेकेदार के आगे गिडगिडाना पडता था। स्थानीय मेला कमेटियों ने उन्हें मेले में बुलाना ही छोड दिया था मगर वे हिम्मत नहीं हारे कि मेला कमेटियों के खिलाफ जिलाधीश को शिकायत की तो जिला प्रशासन ने जांच करवाई।
सिराज के मेंलों में ठेकेदारी हमेशा के लिए खत्म हो गई कि सिराज के लोकगायकों को मान-सम्मान मिल रहा है। इसी तरह जिला स्तरीय मेला ख्योड, जिला स्तरीय मेला करसो, मेला माहूनाग, जिला स्तरीय मेला भंगरोटू, जिला स्तरीय मेला धर्मपूर, जिला स्तरीय मेला पधर, राज्य स्तरीय मेला नलवाड सुन्दरनगर, मेला जोगिन्दरनगर, अंतर्राष्ट्रीय शिवरात्री महोत्सव मंडी, अंतर्राष्ट्रीय कुल्लू दशहरा जैसे मेलों में भी लीलाधर चौहान ने प्रशासन के साथ जंग लडी है जिसमें लोकगायकों को फायदा हुआ है।
लीलाधर चौहान का कहना है कि पहाड का प्राकृतिक सौदर्य कल कल बहती जलधाराएं वाद्ययन्त्रों संग निकलती सुरलहरियां, मेले त्यौहार हिमाचल प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत है। पहाडों में गूंजता संगीत पहाड के मेले त्यौहारों की जान है। यही वजह है कि फिल्मी दुनिया से लेकर विदेशी मंचों तक हिमाचली संगीत खूब धूम मचा रहा है। हैरानी की बात है कि ग्रामीण अंचलों में संगीत को नये आयाम देती प्रतिभाएं अपनी उपेक्षा से आहत दिखाई देती है।
संस्कृति कला के संरक्षण संबर्द्धन की दिशा मे उदासिनता कहे या फिर राजनीतिक हस्तक्षेप लेकिन हकीकत यही है कि पहाड की युवा प्रतिभाओं को मंच हासिल करने के लिए खासी जदोजहद करनी पड रही है। लीलाधर चौहान ने बताया कि सिराज विधानसभा क्षेत्र से हिमाचली मशहूर कलाकारा कला चौहान जो संगलबाडा से, शेर सिंह नैयर जो लम्बाथाच से, प्रताप कौल जो जंजैहली से, दीपक आजाद जो शिवाथाना से, दुनी चन्द गोयल लम्बाथाच, नरेन्द्र पहाडिया बगस्याड, बलदीप जरोल, रोहित ठाकुर छतरी, मोहन सिह कुथाह, रोशन जो सरोआ सहित करीब एक दर्जन से अधिक ऐसे कलाकार है जो हिमाचल के विभिन्न मचों पर अपनी प्रस्तुतियों से वाहवाही लूट चुके है मगर स्थानीय मंडी के मेलों इन सभी सिराजी कलाकारों को नजर अन्दाज किया जाता है, ऐसे में इन सभी कलाकारों का मनोबल गिरता नजर आ रहा है कि अंश मात्र परिश्रमिक से संतुष्ट होना पडता है।
अपनी सांस्कृतिक विरासत को बचाए रखने की दिशा में प्रयासरत इन कलाकारों को स्थानीय स्तर पर अधिमान दिया जाना चाहिए और भाषा कला एवं संस्कृति विभाग को भी इस दिशा में कदम बढाने चाहिए। लीलाधर चौहान का कहना है कि हिमाचल के मेले हमारी संस्कृति की धरोहर हैं लेकिन ताज्जुव की बात है कि प्रदेश में स्थानीय स्तर से राष्ट्रीय स्तर तक मनाए जाने वाले मेले त्यौहारों को पश्चिमी रंग में रंगने वाले अदाकारों पर पैसा पानी की तरह बहाया जाता है जबकि स्थानीय लोकगायकों पर अंश मात्र खर्च किया जाता है।
बेहतर होता मेलों के आयोजक अपनी संस्कृति का सम्मान करते हुए स्थानीय लोकगायकों को ज्यादा मौका देते। उन्होने कहा कि कई मेलों में कलाकारों को मामूली सा परिश्रमिक मिलता है जबकि अपनी जेबे भरने में बिचौलिये सफल रहते है। प्रदेश में मेलों के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को बनाए रखने के लिए स्थानीय लोकगायकों को प्रोत्साहित करना बेहद जरूरी है।
लीलाधर चौहान ने बताया कि मण्डी जिला के सिराज क्षेत्र के डेढ दर्जन म्युजिकल ग्रुपों के कलाकार और विभिन्न संगठन मिलकर शीघ्र ही जिलाधीश मण्डी, प्रदेश के मुख्यमन्त्री, भाषा कला संस्कृति विभाग शिमला से मिलेगें और अपनी समस्या का समाधान करवाएगें ताकि पहाड का हुन्नर दम तोडने की बजाए शिखर की ओर बढे।
लोकगायकों को विना आॅडिशन के बुलाये प्रशासन
लीलाधर चौहान ने जिलाधीश को एक पत्र के माध्यम से अपना सुझाव भेजा है कि मंडी अंतर्राष्ट्रीय शिवरात्री महोत्सव में जिला के लोकगायकों का आॅडिशन न करवाया जाए जो कई सालों से हिमाचली संस्कृति पर गीत बना रहे है जिससे उनका मनोबल गिर जाए। उन्होने बताया कि ऐसे कलाकारों का आॅडिशन जरूरी है जो दूसरों के गीत और फिल्मी गीत मंचों पर गाते है।
प्रतिभा के आधार पर चैक द्वारा मिले मानदेय
लीलाधर ने मंडी प्रशासन से मांग की है कि हिमाचली लोकगायकों को उनकी प्रतिभा के आधार पर चैक द्वारा उनके नाम पर मानदेय दिया जाना चाहिए जिससे ठेकेदारी करने वाले लोगों पर रोक लगाई जा सकती है। उन्होेने बताया कि ज्यादातर देखने को मिलता है कि कार्यक्रम के बाद कलाकारों को कैश मानदेय मिलता है कि कलाकार के नाम पर कोई दूसरा गाकर चला जाता है और धांधली का माहौल रहता है। चौहान ने 2016 में आरटीआई द्वारा कई सच सामने सामने लाए है जहां आॅडिशन में फेल हुए कलाकार भी मंच पर गाते हुए नजर आए थे जिन्हें मानदेय भी अच्छा मिला था।
ख्याति प्राप्त म्यूजिक डायरैक्टर द्वारा हो लोकगायकों का चयन
चौहान ने बताया कि लोकगायकों के चयन हेतु ख्याति प्राप्त म्यूजिक डायरैक्टर मंडी के एसडी कश्यप, हमीरपुर परमजीत पम्मी जैसों को बुलाया जाना जरूरी है जिन्हें हिमाचली संस्कृति और हिमाचली लोकगायकों की कला का ज्ञान है तभी लोकगायकों की कला का सम्मान होगा।