नाहन (एमबीएम न्यूज़): बुढ़ापे की जिस दहलीज पर आदमी दूसरों पर आश्रित हो जाता है, वहीं भूप सिंह ने बुढ़ापे को मात देते हुए अगामी पीढ़ी को स्वच्छ पर्यावरण देने की ठान रख रखी है। भूप सिंह का मानना है कि यदि हम पर्यावरण को संरक्षित करेंगे, तभी अगली पीढिय़ों का संरक्षण हो सकता है। कंपकपाते हाथों के मजबूत इरादों के चलते 72 वर्षीय भूप सिंह ने पिछले 10 सालों से पर्यावरण को बचाने के लिए ऐसा अभियान चलाया है कि अभी तक 11 हजार के करीब पौधों का रोपण हिमाचल प्रदेश तथा देश के अन्य राज्यों में करवा चुके हैं।
बतातें चलें कि भूप सिंह प्रदेश उद्यान विभाग में 39 साल तक बतौर माली अपनी सेवाऐें दे चुके हैं।सेवानिवृत के बाद भी उन्होंने अपने काम को जारी रखा तथा अपनी सेवा को समाज सेवा से जोड़ दिया। भूप सिंह ने बताया कि उन्हें 14 हजार रूपए पैंशन मिलती है, जिसका 30 प्रतिशत वो इस समाजसेवा के लिए खर्च करते हैं।
सिरमौर जिला की पच्छाद तहसील के छोटे से गांव मझयाली के 72 वर्षीय भूप सिंह ने पर्यावरण संरक्षण के लिए 10 साल से मुहिम चला रखी है। एमबीएम न्यूज़ नेटवर्क से मुखातिब होते हुए बुजुर्ग भूप सिंह पिछले 10 सालों से नि:शुल्क ही पर्यावरण सरंक्षण के चलते लोगों को पौधे बांट रहे हैं। भूप सिंह ने बताया कि यदि देश का हर परिवार एक पौधा लगाता है, तो यह धरती हरी- भरी रहेगी। उन्होंने कहा कि प्रदेश निर्माता डॉ. वाईएस परमार इस कार्य के लिए उनके प्ररेणा स्त्रोत हैं।
पिछले 10 सालों में उनकी याद में ही निशुल्क पौधों का रोपण कर रहे हैं। नाहन-शिमला एनएच बाग-पशोग पंचायत के मझयाली नामक छोटे से गांव में रहने वाले भूप सिंह मूलरूप से डॉ. वाईएस परमार के गांव चन्हालग के समीप लानाबाका के रहने वाले हैं। अपने प्रिय नेता की याद में अभी तक भूप सिंह ने पर्यावरण सरंक्षण के दृष्टिगत 11 हजार के करीब पौधों का निशुल्क वितरण अपनी नर्सरी से कर दिया है।
प्रदेश के साथ-साथ देश के कई हिस्सों के प्रशासनिक अधिकारियों तथा बुद्धिजीवियों ने भूप सिंह के प्रयासों की सराहना की है, जिसका सबूत भूप सिंह की विजिटर बुक में मौजूद है। भूप सिंह का 6 सदस्यों का परिवार है, जो नाहन-शिमला एनएच पर एक छोटा सा ढाबा भी चलाते हैं। भूप सिंह के मुताबिक अभी तक वह राजस्थान, बिहार, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तराखड़, उत्तर प्रदेश व हिमाचल के कई हिस्सों में उनकी नर्सरी के पौधे पहुंचा चूके हैं।
अपनी नर्सरी में भूप सिंह केवल ऐसे फलदार व छायादार पौधों को ही तैयार करते हैं, जोकि पर्यावरण संरक्षण में भी काम आते है। भूप सिंह अपनी नर्सरी में अखरोट, अनार, अमरूद, पपीता, बान, देवदार, कायल, सेब, दाड़ू, मीठा खजूर, बेड़ा, काफल, अश्वागंधा, पत्थर चट्टा जैसे प्रजाति के पौधों को तैयार कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस बार अपनी नर्सरी में 1700 अखरोट के पौधों को तैयार करने का लक्ष्य रखा है। जिसके लिए उन्होंने बीज भी तैयार कर लिया है।
इसके अलावा उन्होंने सैनधार तथा धारटीधार क्षेत्र में 1200 के करीब देवदार के पौधे रोपण के लिए नि:शुल्क दिए हैं। उन्होंने बताया कि जब तक उनका शरीर काम कर रहा है, तब तक इस काम को निरन्तर जारी रखा जाएगा। अपनी दिनचर्या के 6 से 7 घंटे वो अपनी नर्सरी की देखरेख में बिताते हैं। इस काम के लिए वो कभी-कभार अपने परिवार के लोगों का भी सहयोग लेते हैं।
भूप सिंह के विजिटर बुक में अभी तक 200 बुद्विजीवियों ने अपनी प्रतिक्रिया दी हैं। भूप सिंह हर उस आदमी का रिकार्ड भी रखते हैं, जिन्हें उन्होंने नि:शुल्क पौधे दिए होते हैं। यही नहीं, समय लगने पर भूप सिंह इन लोगों से फोन पर बात करके अपने द्वारा दिये गये पौधों को लेकर बात भी करते हैं, ताकि उनकी मेहनत बर्बाद न हो। भूप सिंह का कहना है, अभी तक उनकी नर्सरी जो भी पौधे गए हैं। सभी पौधे पर्यावरण के संरक्षण के लिए तैयार हो रहे है। उनका मानना है कि एक पेड़ का अंग-अंग इंसान और धरती के काम आता है। एक पौधा इंसान को छांव से लेकर फल, लकड़ी, ऑक्सीजन जैसी कई चीजें देता है, वही पेड़ धरती के वजूद को भी बचाता है।
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भूप सिंह की पर्यावरण प्रेम की मुहिम को लेकर प्रशासन तथा सरकार व विभाग की नजरअंदाजगी हैरत में डालने वाली है। अभी तक सरकार की कोई मदद या प्रोत्साहन भूप सिंह को नसीब नहीं हुआ है। कुछ समाज स्वयंसेवी संस्थाओं ने भूप सिंह की इस मुहिम को संज्ञान में जरूर लिया है। मगर पर्यावरण को लेकर करोड़ों रूपये का बजट खर्च करने वाले विभागों ने कभी भी इस पर्यावरण प्रेमी की सुध नहीं ली है, जिसका रोष भूप सिंह को है।
उन्होंने कहा कि पर्यावरण को बचाने के लिए कभी-कभार वन विभाग उन्हें बीज डालने की थैलीयां देता है। मगर अभी तक उनकी मुहिम को कोई भी सरकारी प्रोत्साहन नहीं मिला है। भूप सिंह की इच्छा है कि अपने इस हुनर को युवाओं में ले जाना चाहते हैं, यदि सरकार या प्रशासन उनकी मदद करे तो वह युवाओ को नि:शुल्क नर्सरी का प्रशिक्षण देने को तैयार हैं।