मंडी (वी कुमार) : कुदरत का भी अजीब खेल है। अंबाला की नीलम सेठी की अंतिम इच्छा थी कि उनकी जब मौत हो तो आंखों से किसी के जीवन में उजाला हो, लेकिन कुदरत ने इस इच्छा को भी नहीं माना। बेटे विवेक कुमार की बारात में आई थी। मगर सुंदरनगर के कांगू हादसे ने उनसे जिंदगी छीन ली। अभागी नीलम को न तो बहू का सुख मिल पाया, न ही नेत्र दान कर पाई। नेत्रदान के लिए बकायदा पंजीकरण करवाया हुआ था।
अंबाला की रहने वाली नीलम के परिवार को उनकी इस इच्छा के बारे में पता था। बारात में भाई दूसरे वाहन में था। सूचना मिलते ही जैसे ही अस्पताल पहुंचा तो बहन का शव देखकर पांव तले जमीन खिसक गई। मामूली होश आते ही विमल को बहन के संकल्प की याद आई। नम आंखों से चिकित्सकों को बताया कि उनकी बहन नेत्रदान करना चाहती थी। एसडीएम से भी गुहार लगाई गई।
जायजा लेने पहुंचे उपायुक्त मदन चौहान को बात बताई तो डीसी ने चिकित्सकों को तलब किया। विडंबना यह थी कि चिकित्सकों ने नेत्रदान की सुविधा होने से इंकार कर दिया। इसके लिए शव को या तो आईजीएमसी या फिर टांडा ले जाने की बात कही गई। मंडी में भी नेत्र बैंक की सुविधा नहीं है। टांडा या शिमला पहुंचाने के लिए 5 से 6 घंटे लग सकते थे। बहरहाल कांगू हादसे ने न केवल नीलम सेठी का जीवन छीन लिया, बल्कि उनका संकल्प भी पूरा नहीं होने दिया।
सनद रहे कि सुंदरनगर के कांगू में बारातियों से भरे ट्रैवलर में दूल्हे की मां नीलम सेठी की मौत हो गई थी, जबकि पिता को पीजीआई रैफर किया गया। इस हादसे में कुल 6 लोगों की मौत हुई थी। बेशक ही आज नीलम सेठी दुनिया में नहीं है, भले ही नेत्रदान का उनका संकल्प भले ही पूरा न हो पाया है, लेकिन जीते जी उनकी सोच को सलाम करना होगा। नीलम अपने जीवन के बाद किसी की जिंदगी में उजाला लाना चाहती थी। दूल्हे विवेक सेठी की मां एसबीआई लुधियाना शाखा में प्रबंधक के पद पर कार्यरत थी, जबकि पिता इंडियन बैंक में प्रबंधक हैं।