नाहन (एमबीएम न्यूज): साल 2017 विधानसभा चुनाव में पच्छाद निर्वाचन क्षेत्र से विकास के मुद्दे गौण हैं। यहां जातिवाद के साथ-साथ क्षेत्रवाद का नारा हावी होता नजर आ रहा है। निर्दलीय प्रत्याशी रतन कश्यप द्वारा गिरिपार का नारा दिया जा रहा है तो कांग्रेस व भाजपा के प्रत्याशी कहीं न कहीं जातिवाद के नारे पर जमीन को तलाश रहे हैं।
उम्मीद की जा रही है कि मतदाता सियासतदानों की चाल को समझते हुए सूझबूझ से अपने मत का इस्तेमाल करेंगे। गिरिआर से ही कांग्रेस व भाजपा ने अपने पुराने खिलाडिय़ों को मैदान में उतारा है। 1982 से 2012 तक लगातार सात मर्तबा विधायक बने गंगूराम मुसाफिर पिछला चुनाव भाजपा के युवा प्रत्याशी सुरेश कश्यप से हार गए थे। सुरेश को 25,488 तो मुसाफिर को 22,643 मत पड़े थे। हलका दो विकास खंडों पच्छाद व राजगढ़ में बंटा हुआ है। दोनों में ही 30-30 पंचायतें हैं।
राजगढ़ का इलाका गिरिपार में आता है। मतों की संख्या भी करीब-करीब बराबर ही है। पिछले चुनाव के आंकड़ों पर नजर दौड़ाई जाए तो गिरिपार से मुसाफिर को भाजपा के मुकाबले अधिक वोट पड़े थे। इस बार उस इलाके से रतन कश्यप मैदान में कूद गए हैं। यह भी जनता को ही तय करना है कि तीसरा विकल्प बनाना है या नहीं। 1951 के बाद पहली मर्तबा 2012 में ही भाजपा का फूल खिला था।
1951 में राज्य के निर्माता डॉ. वाईएस परमार ने भी इसी हलके से चुनाव लड़ा था। उस समय डॉ. परमार ने 8644 वोट हासिल किए थे, जबकि उनके खिलाफ मैदान में उतरे निर्दलीय प्रत्याशी को मात्र 1450 वोट हासिल हुए थे। 13 में से 11 चुनाव कांग्रेस ने जीते। क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाले पत्रकार राजन पुंडीर भी इस बात से इत्तफाक रखते हैं कि हलके का चुनाव जातिवाद व क्षेत्रवाद के नारे पर हो रहा है, जो सही नहीं है।