मंडी (वी कुमार): पठानकोट हाईवे पर भू-स्खलन की त्रासदी से हर कोई सहमा हुआ है। तकरीबन 12 घंटे बीत चुके हैं, लेकिन एचआरटीसी की उस बस का कोई अता-पता नहीं है, जिसे लाखों टन मलबा अपने साथ ही सडक़ से तकरीबन दो किलोमीटर नीचे घसीटता ले गया था। सेना के तकरीबन 120 जवानों के अलावा सैंकड़ों स्थानीय लोग मलबे में इस उम्मीद से लोगों की तलाश कर रहे हैं कि शायद उनकी सांसें चल रही हों। फिलहाल मरने वालों का आंकड़ा 7 तक पहुंचा है।
जानकारी के मुताबिक एक व्यक्ति की टांग भी मलबे में मिली है। तकरीबन डेढ़ घंटा पहले सेना के जवान मलबे में दबी एचआरटीसी की बस तक पहुंच चुके हैं। लेकिन खुदाई करना बेहद मुश्किल है, क्योंकि बारिश के कारण मलबा अब दलदल में तबदील हो चुका है। रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान पहाड़ी से भू-स्खलन की भी आशंका जताई जा रही है, लिहाजा सावधानी बरतना बेहद लाजमी है। यह जरूर पता चल रहा है कि मलबे के साथ लुढकने वाली बस के हिस्से इधर-उधर बिखरे हैं।
यह भी साफ हो रहा है कि मलबे में ग्रामीणों के मकानों के अलावा मवेशी भी दबे हैं। मलबे में दबी बस चंबा से मनाली जा रही थी। आशंका जाहिर की जा रही है कि इस बस में 30 से 40 यात्री सवार थे। यह बात रात को ही साफ हो गई थी कि मलबे की चपेट में एचआरटीसी की वॉल्वो समेत दो बसें आई हैं। इसके अलावा एक बाइक व एक कार के दबे होने के भी स्पष्ट संकेत मिल गए थे।
जानकार बता रहे हैं कि इस वक्त केवल मलबे में दबे लोगों को तलाशने की ही भरसक कोशिश की जा रही है। आसपास के लोगों ने रेस्क्यू के लिए जुटे लोगों के खाने का इंतजाम भी किया है। 1977 व 1997 में भी भू-स्खलन की त्रासदी की बात कही जा रही है, लेकिन पद्धर उपमंडल की उरला ग्राम पंचायत के कोटरूपी में पहाड़ी दरकने की यह घटना सबसे भीषण मानी जा रही है। डीसी संदीप कदम भी पूरी रात से घटनास्थल पर ही डटे हुए हैं। दोनों तरफ से रेस्क्यू ऑपरेशन जारी है।