फागू (शेरजंग चौहान) : राजगढ़ क्षेत्र के साहित्य एवं कलाप्रेमियों के लिए एक सम्मानजनक खुशी का समाचार है। एक बार फिर से आकाशवाणी शिमला की ऑडिशन कमेटी में राजगढ़ क्षेत्र को प्रतिनिधित्व दिया गया है जिसके तहत देवठी मझगांव के प्रसिद्ध साहित्यकार एवं गायक विद्यानंद सरैक को कमेटी का सदस्य मनोनीत किया गया है। इससे पहले, सर्वप्रथम पझोता आंदोलन प्रमुख एवं संगीत़कार वैद्य सूरतसिंह को इस कमेटी का सदस्य बनाया गया तथा उसके बाद प्रसिद्ध गायक कलाकार कृष्णलाल सहगल ऑडिशन कमेटी के सदस्य रहे। सरैक को मिली सदस्यता से पहले जयप्रकाश चौहान भी इस कमेटी के सदस्य रह चुके हैं जिनका लगभग सन् 2000 के आसपास कार्यकाल रहा। उसके बाद डेढ़ दशक तक किसी भी कलाज्ञाता को प्रतिनिधित्व नहीं मिला था। इतने बड़े अंतराल के बाद प्रदेशस्तर पर कला परख करने का सौभाग्य मिलने पर नवनियुक्त सदस्य विद्यानंद सरैक ने जहां आकाशवाणी प्रबंधन का आभार प्रकट किया है वहीं वे अपने सहयोगियों का आभार प्रकट करना भी नहीं भूले हैं।
इस कड़ी में सर्वप्रथम वे ‘‘पहाड़ी कलाकार संघ’’ को श्रेय देते हैं जिसमें क्षेत्र के प्रमुख कलाकार शामिल थे और कई वर्षों तक पहाड़ी संस्कृति का मंचन करते रहे। यहां यह कहना भी तर्कसंगत होगा कि ऑडिशन कमेटी के ये सभी सदस्य पहाड़ी कलाकार संघ से संबंधित थे। ज्ञात रहे प्रथम मुख्यमंत्री डा0 परमार के पहाड़ी प्रेम के चलते, तत्कालीन खादी बोर्ड के चेयरमेन एवं पझोता आंदोलन के प्रणेता वैद्य सूरतसिंह के द्वारा इस संघ का गठन किया गया था। यही वह समय था जब वैद्य सूरतसिंह को ऑडिशन कमेटी का सदस्य भी चुना गया था। इसी कड़ी में अगले सदस्य थे जाने माने पहाड़ी गायक कृष्णलाल सहगल। वे हरफनमौला संगीतज्ञ हैं। वे पहाड़ी कलाकार संघ के जमाने में उक्त मंच के मुख्य गायक एवं संगीत निदेशक हुआ करते थे। उसके बाद आडिशन कमेटी के सदस्य बनने वाले थे जय प्रकाश चौहान। ये वैद्य सूरतसिंह के पुत्र हैं और तत्कालीन मशहूर कलाकर बीडी काले के शिष्य थे। ये पारंगत तबलावादक हैं और पहाड़ी कलाकार संघ को चलाने में इनकी विशेष भूमिका रही है। और अब आता है पहाड़ी संस्कृति को समर्पित नाम, विद्यानद सरैक का। विद्यानंद सरैक मात्र कवि या गायक ही नहीं हैं अपितु संगीतकार, नाटककार, निदेशक, लेखक, इतिहासकार, लयकार के अलावा पहाड़ी संस्कृति के हर विषय के जानकार हैं।
संयोग देखिए कि ये भी उसी पहाड़ी कलाकार संघ के मुख्य निदेशक थे। आज जब वे आकाशवाणी शिमला की ऑडिशन कमेटी के सदस्य नियुक्त हुए हैं तो वे सबसे पहले इस उपलब्धि के लिए इसी संघ को श्रेय देते हैं। इसी के साथ वे स्व0 डा0 परमार एवं स्व0 वैद्य सूरतसिंह को प्रणाम करते हुए कहते हैं कि उनकी सोच ही पहाड़ी संस्कृति के उत्थान का प्रारंभ रही है।