मंडी ( वी कुमार ): 108 एम्बुलेंस में यदि किसी मरीज को ले जाते समय रास्ते में उसकी मौत हो जाए तो शव को एम्बुलेंस के माध्यम से घर पर वापस लाने की कोई व्यवस्था नहीं है । यानि 108 के सिस्टम के सामने इंसानियत के कोई मायने नहीं है । सरकार द्वारा करोड़ों रूपए खर्च करके जो एम्बुलेंस सेवा शुरू की गई है उसमें रास्ते में मौत हो जाने पर शव को वापिस लाने का कोई प्रावधान नहीं है। इस बात का पता उस वक्त चला जब एक गरीब व्यक्ति को उपचार के लिए मंडी से शिमला रैफर किया गया।
स्वास्थ्य मंत्री कौल सिंह ठाकुर के गृह विधानसभा क्षेत्र द्रंग की ग्राम पंचायत कटौला के 42 वर्षिय प्यारे लाल की हृदयगति रूक गई। उसे जोनल हास्पिटल लाया गया, जहां से उसे शिमला रैफर कर दिया गया। आईआरडीपी परिवार के मुखिया को शिमला ले जाने के लिए 108 एम्बुलेंस मुहैया करवाई गई। लेकिन शिमला पहुंचने से पहले ही दाड़लाघाट के पास प्यारे लाल की मृत्यु हो गई। 108 एम्बुलेंस कर्मी मौत की पुष्टि करने के लिए शव को दाड़लाघाट ले गए और जब प्यारे लाल को डाक्टरों ने मृत घोषित कर दिया, तो शव को वहीं छोड़कर खाली एम्बुलेंस मंडी के लिए रवाना हो गई। गरीब परिवार को यहां से शव को वापिस लाने के लिए टैक्सी का इंतजाम करना पड़ा। ग्राम पंचायत कटौला के उपप्रधान राजेंद्र कुमार ने उक्त घटना की जानकारी देते हुए सरकार से मांग की है कि रास्ते में मौत हो जाने पर शव को वापिस गंतव्य तक लाने का प्रावधान भी होना चाहिए। वहीं 108 एम्बुलेंस सेवा मंडी जोन के प्रभारी मुस्ताक अहमद ने बताया कि शव को लाने और ले जाने का कोई प्रावधान नहीं रखा गया है, इसलिए यदि किसी की रास्ते में मृत्यु हो जाती है तो शव को वापिस नहीं लाया जाता।
रूढ़ीवादी परंपरा को तोड़ा, बेटियों ने दी पिता की चिता को मुखाग्नि
कटौला पंचायत के 42 साल प्यारे लाल एक गरीब परिवार से संबंध रखता था और उसकी पांच बेटियां थी। जब शव घर पहुंचा तो चिता को मुखाग्नि देने के लिए किसी पुरूष का चयन होने लगा। लेकिन मृतक प्यारे लाल की 3 बड़ी बेटियों ने आगे आकर इस परंपरा का निर्वहन करने की हामी भरी। उन्होंने शमशानघाट पहुंचकर अपने पिता की चिता को मुखाग्नि की। बता दें कि कटौला इलाके में यह पहली घटना है, क्योंकि इस क्षेत्र में महिलाओं का शमशानघाट जाना और मुखाग्नि देने का कोई प्रचलन नहीं है, लेकिन इन बेटियों ने अपने पिता को अंतिम विदाई देकर एक नई शुरूआत की है।