शिमला (एमबीएम न्यूज़) : अवैध भवनों के नियमितिकरण के मामले पर शिमला के समाजिक संगठनों ने सरकार की घेराबंदी तेज कर दी है। उपनगरीय जन कल्याण समन्वय समिति और शिमला नागरिक सभा ने आरोप लगाया है कि न तो सरकार और न ही टीसीपी के अन्दर पूरे प्रदेश के मर्ज्ड एरिया के लोगों की सुनवाई हो रही है। दोनों संगठनों का मानना है कि सरकार तथ्यों की तह में गए बिना मर्ज्ड एरिया से नियमितिकरण की एवज में पैसा वसूलने की जिद्द पकड़कर बैठी है, लेकिन इसका खामियाजा भवन मालिकों को उठाना पड़ रहा है।
उप नगरीय जन कल्याण समन्वय समिति और शिमला नागरिक सभा ने शुक्रवार को एक संयुक्त प्रैस वार्ता में नियमितिकरण के लिए सरकार से एकमुश्त छूट की मांग की। दोनों संगठनों के पदाधिकारियों का आरोप है कि सरकार ‘जहां है जैसे हैं’ का नाम लेकर अव्यावहारिक और गैर जरूरी शर्तें लगाकर भवन नियमितिकरण करवाना चाहती है।
समन्वय समिति के सचिव गोविन्द चतरान्टा ने कहा कि सरकार इसलिए एकमुश्त राहत नहीं देना चाहती, क्योंकि इससे आम जनता को तो लाभ मिल जाएगा, लेकिन नेताओं की झोली भरने वाले बिल्डरों को भविष्य में नियमों का पालन करके ही निर्माण करना पड़ेगा, जो वे नहीं चाहते। बिल्डर तो यही चाहेंगे कि सरकार बार-बार नियम बदले और वे हर बार कुछ पैसा देकर अपने अवैध निर्माण को नियमित करा सकें जैसा आज तक होता आया है।
उन्होंने कहा कि टीसीपी और नगर निगम स्वयं भी इस बात से आश्वस्त नहीं है कि प्रदेश भर में कुल कितने मकान हैं जो नियमिति किए जाने हैं। टीसीपी जहां ऐसे मकानों का आंकड़ा 13 हजार बताती है वहीं अन्य स्रोतों द्वारा इसकी संख्या 35 हजार से 45 हजार के बीच बताई जा रही है। वहीं 2016-17 में नगर निगम शिमला में ही गृह कर देने वालों की संख्या 26 हजार के लगभग है। इससे जाहिर होता है कि सरकार नहीं जानती है कि उसके फैसले से पूरे प्रदेश में कितने लोग प्रभावित होंगे।
उन्होंने कहा कि शिमला और इसके आसपास भवन मालिकों और भवनों की अलग-अलग श्रेणियां हैं। एक तरफ पुराना शिमला शहर है जिस पर पहले से ही नगर निगम अधिनियम के अनुसार भवन निर्माण की शर्तें लग रही हैं और दूसरी हो ऐसे लोग हैं जिन्होंने मर्ज्ड एरिया जो पहले पंचायतों का हिस्सा था वहां जमीन खरीदकर मकान बनाएं हैं। वहीं इस क्षेत्र में स्थानीय बाशिंदे भी हैं जो पुश्त दर पुश्त यहां रह रहे हैं और अभी भी कृषि और पषुपालन के कार्य से जुड़े हुए हैं। लेकिन सरकार इस सब की अनदेखी करके मात्र बिल्डरों को ही फायदा देने वाली नीति लागू कर रही है।
शिमला नागरिक सभा के कोषाध्यक्ष जीयानन्द शर्मा ने कहा कि टीसीपी तमिलनाडु और कर्नाटक का उदाहरण देकर लोगों को गुमराह करने की कोशिश कर रही है कि उन जगहों में 20 हजार रूपये वर्गमीटर के हिसाब से अवैध निर्माण नियमित किए गए हैं, लेकिन वह इस बात को छुपा रही है कि एक तो जिन शहरों में नियमितिकरण की ये फीस ली गई है वे महानगरों की श्रेणी में आते हैं और दूसरा तथ्य टीसीपी यह भी छुपा रही है कि दिल्ली में ऐसी कालोनियां बिना शर्त नियमित की गई जो सरकारी जमीन पर बनी हैं।