कुनिहार (दीपक चौधरी) : राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला ममलीग में 22 जून को एक इतिहास रचने की इबारत लिखी जाएगी। देश में शायद पहली बार किसी सरकारी जमा दो स्कूल में सौ वर्ष पूरे होने पर ओल्ड स्टूडेंट एसोसिएशन का गठन किया जाएगा।
इस एसोसिएशन में प्रदेश के सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री डा. कर्नल धनीराम शांडिल के गुरु व पंजाब के प्रसिद्ध साहित्यकार 83 वर्षीय वयोवृद्ध मनोहर लाल आजाद सहित 18 वर्ष की आयु से लेकर 90 वर्ष की आयु के 1500 लोग शामिल होंगे। रावमा पाठशाला ममलीग 22 जून, 1917 को अस्तित्व में आया था तथा उस समय पटियाला रियासत के आधिपत्य में यहां पहले प्राथमिक पाठशाला खोली गई थी। 1955 में इस स्कूल को उच्च विद्यालय का दर्जा प्राप्त हुआ तथा 1993-94 के सत्र में यहां जमा दो की कक्षाएं संचालित हो गई।
ममलीग स्कूल अपने आगोश में कई ऐतिहासिक घटनाओं को समेटे हैं। सन 1917 में जब ममलीग स्कूल आरंभ हुआ तो पहले कुछ वर्ष तो अध्यापक निशुल्क सेवा ही करते रहे। सन् 1955 तक अध्यापकों को बच्चों के अभिभावक अनाज व गुड़ ही वेतन के रूप में देते थे। उस समय के एक अध्यापक ईश्वर दास महंत तो अधिक अनाज इकट्ठा हो जाने पर क्षेत्र के जरूरतमंदों को अतिरिक्त अनाज वितरित कर देते थे।
प्रदेश के मंत्री डा. धनीराम शांडिल ने भी अपनी दसवीं की परीक्षा ममलीग स्कूल से ही ग्रहण की। उनके गुरु मनोहर लाल आजाद थे। मनोहर लाल पंजाब राज्य के रहने वाले हैं तथा साहित्य जगत में उनका जाना-पहचाना नामा है। ‘नारी तेरा ये कैसा बलिदान’ इत्यादि कविताओं के साथ-साथ उनकी सामाजिक, महिला उत्थान के ऊपर कई किताबें प्रकाशित हो चुकी है। अस्तित्व में आने के बाद 22 जून को ममलीग स्कूल में एक ऐतिहासिक शुरूआत होने जा रही है। सरकारी स्कूल में अपनी ही तरह का एक यह अनूठा कार्यक्रम होगा।
स्कूल के पुराने 100 साल के रिकार्ड को खंगाला जा रहा है तथा प्रत्येक ओल्ड स्टूडेंट का अता-पता करके उनसे संपर्क किया जा रहा है। अनुमान है कि 22 जून को 1500 के करीब 18 वर्ष की आयु से लेकर 90 वर्ष की आयु तक के पुराने स्टूडेंट यहां पहुंचेंगे। उसी दिन यहां पहली बार ओल्ड स्टूडेंट एसोसिएशन का गठन भी किया जाएगा।
मंत्री डा. धनीराम शांडिल भी विशेष रूप से इस दिन उपस्थित रहेंगे। उसी दिन यह निर्णय भी लिया जाएगा कि ममलीग स्कूल के शताब्दी समारोह को इतने बड़े, पारंपरिक व अनूठे ढंग से मनाया जाए, ताकि इसकी धूम प्रदेश के साथ-साथ पूरे भारत में भी सुनाई दे। इस समारोह में पाश्चात्य संस्कृति की बजाय प्राचीन लोक संस्कृति, प्राचीन व लोकल वाद्ययंत्र, स्थानीय धाम का समावेश हो।