शिमला (एमबीएम न्यूज़) : हिमाचल प्रदेश जैविक विविधिता बोर्ड शीघ्र ही हिमाचल प्रदेश से जड़ी-बूटियां ले जाने वाले आयुर्वेदिक कंपनियों से पूछताछ करेगा और उनसे जवाबतलब किया जाएगा कि वे इस पहाडी प्रदेश से जुड़ी बूटियां ले जाकर किस तरह लाभ कमाते हैं, जबकि इसके एवज में राज्य सरकार को कोई लाभ नहीं पहुंचता है।
बोर्ड के अध्यक्ष तथा अतिरिक्त मुख्य सचिव तरूण कपूर ने बताया कि राज्य में विविधता बोर्ड अधिनियम 2002 की कार्यान्वयन प्रक्रिया शुरू हो गई है और प्रदेश से जड़ी बूटियां ले जाने वाले प्रमुख आयुर्वेदिक क को प्रदेश सरकार तथा बोर्ड से अपने आपको पंजीकरण करवाने के लिए कहा जाएगा।
उन्होंने कहा कि आयुर्वेदिक कंपनियों द्वारा गुप्त रूप से जड़ी-बूटियों को ले जाने के कारण कई ऐसी महत्वपूर्ण जड़ी-बुटियां लुप्त हो रही हैं। उनका कहना था कि हिमाचल से कुछ ऐसे तत्व हैं, जिनको इन जडी-बूटियां बारे पता है और वो इनके औषधीय मुल्यों को जानते हैं तथा इन्हें एकत्रित करके आगे सस्ते दामों बेच देते हैं।
राज्य में बायो विविधता बोर्ड 2006 में स्थापित हुआ था, लेकिन यह सक्रिय नहीं रहा और बीते 10 सालों में बोर्ड की केवल दो बैठकें ही हो पाई हैं। उन्होंने कहा कि अब बोर्ड ने फैसला किया है कि प्रदेश की सभी पंचायतों में जैविक प्रबंधन कमेटियां का गठन किया जाएगा, जो अपना एक रजिष्टर तैयार करके अपने-अपने क्षेत्रों में पाई जाने वाली जड़ी-बूटियों का ब्यौरा रखेंगे।
कपूर ने बताया कि लगभग 500 पंचायतों को रजिष्टर मुहैया कर दिए गए हैं और इन्होंने यह काम शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा कि कई सालों से प्रदेश के कुछ लोग वन विभाग से परमिट लेकर इन जडी बूटियों को एकत्रित करते आ रहे हैं और मामूल राॅयल्टी विभाग को दे देते हैं। अज्ञानी स्थानीय लोग जिन्हें इन जड़ी बूटियों का आयुर्वेदा में लाभ के बारे नहीं पात, वे आगे कंपनियों को ये जडी बूटियां बेचकर मामूली रकम कमाते हैं और राज्य सरकार को आज तक इनसे कोई लाभ नहीं मिला है।
तरूण कपूर ने कहा कि बोर्ड ने यह भी फैसला किया है कि जडी बूटियों की जानकारी के लिए लोगों को भी अवगत करवाया जाएगा। पिछले दिनों बोर्ड द्वारा शिमला में एक मीडिया कार्यशाला का आयोजन भी किया गया, जिसमें बोर्ड के अध्यक्ष तरूण कपूर ने जानकारी देते हुए कहा कि बोर्ड की ओर से कुछ ऐसे व्यक्तियों से संपर्क किया जा रहा है, जिनमें घुमक्कड, गुजर-गददी भी शामिल हैं, जिन्हें इन जडी बूटियों बारे जानकारी है, इनकी भी इस प्रक्रिया में मदद ली जाएगी।
एक अनुमान के मुताबिक हिमाचल प्रदेश से गैर वन्य उत्पाद लगभग 2500 मीट्रिक टन एकत्रित होता है, जिसकी करोड़ों रूपये की कीमत बताई जाती है।