मंडी (वी. कुमार): हिमाचल प्रदेश आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है। लेकिन प्रदेश के मुख्यमंत्री व मंत्री परिषद की तरह मुख्य संसदीय सचिव भी वाहनों में भारी भरकम राशि का ईंधन फूंकने व मरम्मत के मामले में पीछे नहीं हैं। जहां प्रदेश के मुख्यमंत्री व मंत्री परिषद के सदस्यों ने तीन साल में अपने वाहन में करोडों का ईंधन व मरम्मत में खर्च किया है।
वहीं पर प्रदेश के 8 संसदीय सचिवों ने भी विगत तीन वर्षों में एक करोड रूपए से ज्यादा राशि अपने वाहनों के ईंधन व मरम्मत में खर्च की है। प्रदेश सचिवालय से जारी सूचना के अधिकार से मिली जानकारी में इस तथ्य का खुलासा हुआ है। बालीचौकी तहसील के सुधराणी (खलवाहण) निवासी जिला परिषद सदस्य व आरटीआई एक्टिविस्ट संत राम ने प्रदेश सचिवालय से संसदीय सचिवों के वाहनों से संबंधित जानकारी मांगी थी।
सचिवालय ने सूचना जाहिर करते हुए बताया है कि इन तीन सालों में प्रदेश के आठ मुख्य संसदीय सचिवों ने करीब एक करोड से ज्यादा राशि अपने वाहनों के ईंधन और मरम्मत में खर्च की है। संत राम ने बताया कि मुख्य संसदीय सचिव सोहन लाल ठाकुर और विनय कुमार ने क्रमश: करीब 12-12 लाख रूपए से ज्यादा राशि का ईंधन अपने वाहन में भरवाया है। इसके अलावा नीरज भारती ने ईंधन पर करीब 11 लाख रूपए से ज्यादा राशि खर्च की है। वहीं पर सीपीएस आई डी लखनपाल ने करीब पौने दस लाख, मनसा राम ने करीब 9 लाख, जगजीवन पाल ने दो साल में करीब 7 लाख, नंदलाल ने करीब 8 लाख और रोहित ठाकुर ने पांच लाख रूपए की राशि अपने वाहनों में ईंधन भरने पर खर्च की है। इसके अलावा वाहन की मरम्मत के लिए नीरज भारती ने करीब 8 लाख, सोहन लाल ठाकुर ने छह लाख, जगजीवन पाल ने पौने छह लाख, विनय कुमार ने 5 लाख, नंद लाल ने साढे चार लाख, रोहित ठाकुर ने सवा चार लाख, आई डी लखनपाल ने पौने चार लाख और मनसा राम ने अढाई लाख रूपए खर्च किए हैं।
संत राम ने कहा कि आर्थिक संकट के बावजूद मितव्यतता न अपना कर सरकार के मुख्यमंत्री, मंत्री परिषद और मुख्य संसदीय सचिव अपनी सुविधाओं पर भारी भरकम खर्चा कर रहे हैं। उन्होने कहा कि पंचायत प्रतिनिधि भी जनता से चुनकर आते हैं और विधानसभा सदस्यों की ही भांती जनता के लिए कार्य करते हैं। लेकिन पंचायत प्रतिनिधियों व विधानसभा सदस्यों के बीच असमानता की खाई लगातार बढती जा रही है। पंचायत प्रतिनिधियों को न तो सम्मानजनक मानदेय दिया जा रहा है और न ही अन्य सुविधाएं। विधायिका के लिए भारी भरकम वेतन, पेंशन व अन्य सुविधाओं का अंबार लगा हुआ है जबकि ग्रास रूट पर कार्य कर रहे पंचायत प्रतिनिधियों से हो रहा सौतेला व्यवहार लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है।