नाहन (शैलेंद्र कालरा): ‘‘मरता इंसान कुछ भी कर सकता है’’, यह वह शब्द है, जो सतीश तोमर ने सुरंग से सुरक्षित निकलने के बाद एमबीएम न्यूज नेटवर्क से विशेष बातचीत में व्यक्त किए हैं। सतीश के मुताबिक उसके मोबाइल में टार्च सुविधा बेहद सार्थक साबित हुई। इस टार्च की लाइट से ही सतीश व मनीराम ने भीतर अंधेरे में अपनी जरूरत की चीजों को तलाश किया। इस दौरान कागज सबसे बड़ी जरूरत लगी क्योंकि इसे खाकर जिंदा रहा जा सकता था।
मशीन का पानी पीने के लिए भी इस्तेमाल किया गया। तीसरे दिन सतीश के मोबाइल की टार्च जवाब दे गई। लेकिन हौंसले इतने बुलंद थे कि एक महीने भी अंदर ही रहने की हिम्मत थी। करीब 7 से 10 मिनट तक सतीश ने मोबाइल पर विशेष बातचीत पर यह भी बताया कि जिस वक्त प्रशासन का संपर्क हुआ, तो उन्हें लगा कि वह जिंदगी की सबसे बड़ी जंग जीतने के करीब हैं। सौभाग्य से कंप्रेशर के माध्यम से सतीश व मनीराम तक ऑक्सीजन पहुंच रही थी।
सतीश के मुताबिक हादसे के वक्त 8-9 मजदूर काम में लगे हुए थे। उस वक्त समय नहीं था कि वह बाहर की तरफ भागते। लिहाजा वह दोनों अंदर की तरफ भागे। चंद मिनटों में ही गहरा अंधेरा सामने था। सतीश का कहना है कि वह जल्द से जल्द घर लौट कर अपनी दादी के चरण छूना चाहते हैं। साथ ही अपने कुल देवता के समक्ष शीश नवाजना चाहते हैं। उन्होंने वीरवार तक घर पहुंचने की उम्मीद जताई है।
सतीश के बड़े भाई विनोद का कहना है कि वह सबसे पहले सतीश को लेकर मां नैना देवी के समक्ष शीश नवाएंगे क्योंकि उन्होंने मां से सकुशल लौटाने की मन्नत की थी। इसके बाद घर वापस लौट कर कुल देवता शिरगुल की मन्नत को भी पूरा करना है। सनद रहे कि सतीश की दादी बिशनी देवी ने सतीश के टनल में फंसने के पहले दिन ही यह कह दिया था कि उनका पोता सकुशल घर लौटेगा। उधर सतीश के घर पर पिता श्याम सिंह तोमर, मां गीता देवी, भाई दलीप तोमर, दो बहनों वीना व रीना को सतीश के घर लौटने का बेसब्री से इंतजार है।