शिलाई : पहाड़ी युवा हरेक क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहे हैं। इस बार पाठकों से बालीकोटी पंचायत के बोबरी गांव की राधा की बात हो रही है। यकीन मानिए, पिता स्वास्थ्य विभाग से चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के तौर पर रिटायर हुए हैं। परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी कमजोर थी कि चार बहन-भाईयों की पढ़ाई का खर्च वहन करना मुश्किल था। लिहाजा, शिलाई में एक छोटी सी दुकान भी चलाई।
कई मर्तबा ऐसा भी हुआ, जब राधा की फीस चुकाने को पैसे नहीं थे तो मां विद्या देवी को आईसक्रीम बॉक्स उठाकर आमदनी जुटानी पड़ी। आप यह भी जानकर दंग होंगे कि जब राधा रोजाना शूलिनी विश्वविद्यालय की प्रयोगशाला में 26 घंटे तक शोध करती है तो घर पर मां भी जागती रहती है।
ये है राधा की उपलब्धि…
छरअसल बॉटनी में पीएचडी कर रही राधा ने घुमंतु गडरियों के साथ महीनों बिताए। इसके लिए चूड़धार चोटी को भी नापा। शोध में राधा यह जानना चाहती थी कि दुर्गम व विकट परिस्थितियों में पशुओं व अपनी बीमारी की स्थिति में गडरिए खुद को बचा पाते हैं। ऐसी कौन सी जड़ी-बूटियां पहाड़ों में छिपी हैं, जो उनको बचाए रखती हैं। इस राज को जानने के बाद राधा अपनी प्रयोगशाला में शोध कर रही है। ताकि रिसर्च का फायदा लोगों को भी मिल सके। अब तक राधा के रिसर्च से जुड़े 19 पेपर प्रकाषित हो चुके हैं, जो अंतरराष्ट्रीय स्तरीय हैं। इसके अलावा 6 पेपर्स प्रकाशन के लिए तैयार हैं।
विशेष बातचीत के दौरान राधा का कहना था कि मां के समपर्ण ने ही आज उन्हें इस मुकाम पर पहुंचाया है। वो सुबह 9 बजे प्रयोगशाला में दाखिल होती हैं और अगले दिन दोपहर 2 बजे बाहर निकलती हैं। राधा की रिसर्च से प्रभावित होकर जर्मनी के एक नामी वैज्ञानिक ने भी उन्हें आमंत्रित किया है। शिलाई से दसवीं कक्षा उत्तीर्ण करने के बाद राधा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
आरकेएमवी से ग्रैजुएशन पूरी करने के बाद सैंट्रल यूनिवर्सिटी से एमएससी की। लवली यूनिवर्सिटी से एमफिल पूरी करने के बाद अब शूलिनी विश्वविद्यालय में पीएचडी कर रही है। हाल ही में नौणी विश्वविद्यालय में आयोजित तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में राधा को यंग वूमैन साइंटिस्ट अवार्ड से नवाजा गया है।
इनका जताती हैं आभार…
यंग वैज्ञानिक राधा अपने गाइड प्रो. पीके खोंसला का आभार प्रकट करती हुई नहीं थकी। बातचीत में बार-बार उनका जिक्र करती रही। इसके अलावा प्रो. सुनील पुरी को भी अपना मार्गदर्शक बताया।