नाहन (अजय धीमान): पूरे उत्तर भारत में जिला मुख्यालय नाहन में रक्षाबंधन का त्यौहार अनूठे तरीके से मनाया जाता है। देश भर में रक्षाबंधन पर केवल राखी बंधवा कर भाई अपनी बहनों को रक्षा का वचन दे कर त्यौहार को मना लेते हैं। लेकिन नाहन शहर में रक्षा बंधन पर रेशम की डोरी के साथ पतंग की डोरी इस पवित्र रिस्ते में अपना विशेष महत्व रखती है। शहर में रक्षाबंधन के साथ पतंग उड़ाने की पंरपरा है, जो ऐतिहासिक काल से बदस्तूर जारी है।
पतंग की डोरी थामे भाई-बहन।एक जमाने से भाई-बहन के पवित्र रिस्ते में पतंग की डोरी ने अपनी पक्की जगह बना ली है। नाहन में रक्षाबंधन के दिन पहले भाईयों ने अपनी बहनों से राखी बंधवाई व बाद में घर के छज्जों पर जाकर पतंग उड़ाने का लुत्फले रहे हैं। इस दौरान बहनें भी अपनी भाई के साथ सहयोग देने छत्त पर नजर आ रही हैं। जिला मुख्यालय नाहन में के वरिष्ठ नागरिक सुखदेव कंवर, राम किशोर बंसल व हरिपाल वालिया ने बताया कि वे बचपन से जवानी तक रक्षाबंधन पर पतंगबाजी कर चुके हैं।
इससे पूर्व उनके दादा पड़दादा पतंगबाजी करते आए हैं। उन्होंने कहा कि पिछले चार दशकों की तुलना में अब पतंगबाजी दो तीन माह की तुलना में रक्षाबंधन के दिन सिमट कर रह गई है। पहले पतंगबाजी रक्षाबंधन से दो माह पहले ही शुरू हो जाती थी। युवक बाज़ारी डोर की अपेक्षा मांजे से सूती हुई डोर प्रयोग करते थे। अब आधुनिकता के दौर में पतंगबाजी का ट्रेंड भी बदला है।
रक्षाबंधन पर एकता की मिसाल
रक्षाबंधन के अवसर पर हुई पतंगबाजी के दौरान आपसी भाईचारे की भी कई मिसालें मिली। इस अवसर पर जहां हिंदू, मुस्लिम, सिख लोगों ने भी रक्षाबंधन के अवसर पर पतंगबाजी में बड़-चढ़ कर भाग लिया। वहीं पांवटा के अतर्गत मिश्रवाला में पिछले दो दशकों से रसिदा शेख ने अपने धर्म के भाई कुलवंत सिंह को राखी पहना हिंदू मुस्लिम भाई चारे की मिसाल पेश की।
ऐतिहासिक काल से चला आ रहा है, रक्षा बंधन पर पतंगबाजी का त्यौहार
हिमाचल में जिला सिरमौर में रक्षा बधंन के त्यौहार पर पंतगबाजी का त्यौहार ऐतिहासिक काल से चला आ रहा है। सिरमौर जिला जब एक रियासत थी उस समय सिरमौर रियासत के राजा रक्षा बंधन पर पतंग बाजी करते थे, उस समय राजस्थान व सहारनपुर व देश के अन्य राज्यों से मशहूर पतंगबाजों को पंतगबाजी की प्रतियोगिता के लिए बुलाया जाता था। इस दौरान सर्वक्षेष्ठ पतंगबाज को पुरस्कृत किया जाता था। यहां सिरमौर के महाराजा का कटा पतंग लाने वाले को भी पुरस्कृत किया जाता था।