बिलासपुर से सुनील ठाकुर की रिपोर्ट
क्या, आपने सुना है प्लास्टिक को भी खाया जा सकता है। चौंकिए मत, कुदरत ने इतना कुछ बख्शा है कि अगर इसे सही तरीके से महसूस किया जाए तो सबकुछ संभव है। घुमारवीं उपमंडल के कहलूर के वैज्ञानिक बेटों ने सीएम स्टार्टअप योजना के तहत ऐसा कुछ कर दिखाया है, जिस पर विश्वास करना भी मुश्किल हो सकता है। अगर इस शोध को व्यवसायिक तरीके से मार्किट में उतारा जाता है तो खाद्य पदार्थो के रैपर की तरह इसे खाया भी जा सकेगा। साधारण शब्दों में यह शोध प्राईमरी फूड पैकेजिंग से जुड़ा हुआ है। आपके जहन में शोध को लेकर सवाल कौंध रहे होंगे। तो चलिए, आपकी जिज्ञासा को दूर करते हुए बताते हैं।
दरअसल होनहार वनस्पति विज्ञान के माहिरों ने डॉ. वाईएस परमार विश्वविद्यालय नौणी के सानिध्य में किया क्या है। करीब एक साल से डॉ. अमित कुमार व डॉ. विकेश भाटिया बायो प्लास्टिक रैपर प्रोडक्टस पर शोध करने में जुटे हुए थे। इसके तहत कहलूर में बॉयो साईंसिज एंड रिसर्च सैंटर से प्रयोगशाला भी स्थापित की। इसमें टमाटर के विभिन्न पौधों में पाए जाने वाले पॉलिमर पर रिसर्च शुरू किया। इसके तहत बायो प्लास्टिक रैपर का निर्माण संभव कर दिखाया। यानि खाद्य पदार्थों का एक ऐसा रैपर, जिसे अगर इंसान खा भी ले तो शरीर पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ेगा।
उदाहरण के तौर पर अगर देखा जाए तो अपर मिडल क्लास में डिप चाय का चलन तेजी से बढ़ा है, लेकिन हर कोई यह भूल जाता है कि डिप करने वाले जिस रैपर में चायपत्ती होती है, वो शरीर के लिए कितना हानिकारक होता है। लेकिन अगर बायो प्लास्टिक रैपर का इस्तेमाल होगा तो वो डिप करते ही घुल जाएगा। एक सवाल के जवाब में शोधकर्ताओं का कहना था कि देश के दक्षिण में इसी तरह के शोध किए जा रहे हैं।
डीआरडीओ में अपनी सेवाएं दे चुके डॉ. अमित कुमार का कहना था कि वर्तमान में खाद्य उत्पादों में इस्तेमाल किया जाने वाला प्लास्टिक रैपर बेहद ही घातक है। डॉ. विकेश भाटिया का कहना था कि प्लास्टिक को खाने से पशुओं के स्वास्थ्य पर भी गहरा असर पड़ता है। इसके विपरीत इको फ्रेंडली रैपर पानी में घुलनशील है। इससे इंसानों में कैंसर की संभावना शून्य हो जाएगी। इस प्रोजैक्ट को शुरू करने से पहले डॉ. विकेश भाटिया सहायक प्रोफैसर के पद पर पंजाब में अपनी सेवाएं दे रहे थे। खास बात यह है कि दोनों ही शोधकर्ताओं ने पीएचडी की पढ़ाई भी साथ की है।
सियाचिन के लिए फायदेमंद…
दावा यह भी है कि सियाचिन में असंख्य फौजियों के लिए बायो प्लास्टिक रैपर बेहद ही फायदेमंद साबित हो सकता है। दरअसल फौजियों को प्लास्टिक की पैकिंग में खाद्य पदार्थ भेजे जाते हैं। अगर सप्लाई को बायो प्लास्टिक रैपर में बदला जाएगा तो पर्यावरण में भी बड़ा योगदान होगा। इसके अलावा रैपर की अहमियत आपदा प्रभावित इलाकों में प्राईमरी फूड पैकेजिंग में बढ़ेगी। दावा यह भी है कि आंतरिक्ष यात्रियों के लिए भी यह बायो प्लास्टिक रैपर वरदान सिद्ध होगा।